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खरमोर पक्षीः कुछ मीडिया बता रहे विदेशी तो बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी पूर्णतः भारतीय?

राजनामा.कॉम। यूं तो मीडिया की भूमिका समाज को सजग करने की होती है लेकिन एक मामले ने कुछ तथा कथित मीडिया के ज्ञान को संज्ञान में लेने जैसा है मामला भले ही दिखने में छोटा हो लेकिन सवाल हर किसके जहन में रहता है कि हम हर बात को जाने की सही क्या है। लेकिन मामला भारत खरमोर पक्षी को लेकर है सवाल के घेरे में तथाकथित मीडिया है तो उधर समाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी वैसे भंडारी एक पत्रकार भी है। लेकिन उन्होंने एक ऐसे राज को खोला है। जिससे लोगो के मन मे सवाल उठाना लाजमी है।

क्योकि पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी जिस मध्यप्रदेश की सरदारपुर विधानसभा में रहते है वहा खरमोर अभ्यारणय बना हुआ है और उस पक्षी विदेशी या आस्ट्रेलिया का बताया जाता रहा है लेकिन भंडारी ने इंदौर के दैनिक बिजनेस दर्पण समाचार पत्र में खबर प्रकाशित की थी जिसमें उन्होंने सरदारपुर विधानसभा में 14 गांव की प्रमुख समस्या जहाँ अभ्यारणय के कारण वहां कि जमीनों पर खरीदी बिक्री,रजिस्ट्री प्रतिबंध है। साथ उन्होंने कुछ बातों का जिक्र कर खरमोर पक्षी को भारतीय बताया है।

आजतक की एमपी तक के द्वारा 1 जुलाई को हुई चुनावी चौपाल में भी खरमोर पक्षी के भ्रभ को दूर करने का प्रयास किया था लेकिन उसी चौपाल एक भाजपा के वक्ता ने उसे आस्ट्रेलिया से अनुबंध बताया और दो देशों का मामला बता दिया।

समाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी ने खरमोर पक्षी के फैले भ्रभ का मुद्दा बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी में पहुँचाई थी जिसके बाद बीएनएचएस ने प्रेस रिलीज कर उक्त बातों का खंडन किया।

बीएनएचएस ने बताया खरमोर यह पक्षी पूर्णतः भारतीय पक्षी है। लेकिन इसे कुछ लोग यह पक्षी ओस्ट्रेलिया का है और इस कारण उसे बचाना जरुरी नहीं  ऐसी गलत जानकारी फैला रहे है।

बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी द्वारा मध्य प्रदेश में जो भ्रम फैला रहे है उस बारे में खुलासा किया गया है। खरमोर Lesser Florican (लेसर फ्लोरिकन) भारत मे पाये जानेवाले चार बस्टर्ड प्रजाती में से सबसे छोटा पक्षी है। यह पक्षी भारत के खुले मैदानों  में पाये जाते है। प्रजनन ऋतू में नर चमकीले काले रंग का हो जाता है और सर पर एक सूंदर कलँगी निकलती है। मादा नर से कुछ बड़ी होती है।  यह अनियमित रुप से स्थानीय प्रवास करता है।

यह एक समय में बड़े पैमाने पर पाए जाते थे, परंतु अभी इनकी आबादी गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के कुछ जगह पर बची है। यह मुख्य रूप से भारत के मध्य और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रो में प्रजनन करते है।

यह गैर प्रजनन के समय दक्षिण-पूर्व भारत की ओर चले जाते हे। कीड़े, कनखजूरे, छिपकली, टोड, टिड्डे, पंख वाली चींटियाँ और बालों वाली इल्ली इनका मुख्य भोजन है । इसके अलावा अंकुरों और बीजों के साथ-साथ पौधों को खाते हुए भी देखा गया है। मध्य प्रदेश में सैलाना (रतलाम), सरदारपुरा (धार), पेटलावद (झाबुवा ), जीरान (निमच) में  खरमोर पाया जाता है।

खरमोर की घटती संख्या एक चिंता का कारण बन चुका है, समय रहते इस पक्षी को बचाया नही गया तो आने वाले दिनो मे यह पक्षी किताबो के पन्ने मे सिमट के रह जायेगा। इस पक्षी को बचाने के लिये हमे घासो के मैदानो को बचाना होगा।  खरमोर आया खुशिया लाया यह गीत हर घर तक पहुचाना होगा ।

स्मारक टिकट भी खरमोर का जारी हुआ थाः वहा भारतीय डाक द्वारा 20.12.1989 को लीख फ्लोरिकन और 05.10.2006  लेसर फ्लोरिकन के रुप स्मारक टिकट के रुप में जारी किया गया था।

खरमोर नहीं है विदेशी मेहमानः सरदारपुर के ग्रामीण इलाके के लोग खरमोर को बडकुडा भी कहते है तो इस पक्षी को लेकर भ्रामक जानकारी कहा से आई जिसमे खरमोर पक्षी को विदेशी मेहमान बताया जाता रहा है। लोग ऑस्ट्रेलिया का पक्षी मानते आए है लेकिन हमारी पड़ताल में न तो यह विदेशी मेहमान न ही यह ऑस्ट्रेलिया का,यह मूलतः अपने देश मे ही यह खरमोर पक्षी देखा जाता है ।

खरमोर पक्षी पर गाना भी उपलब्धः लेसर फ्लोरिकन पर सुश्री सुप्रिया झुनझुनवाला (आर्क फाउंडेशन से) द्वारा निर्मित….. हिंदी “खरमोर नाम से गाना भी बनाया गया है। जिसमे खरमोर पक्षी के बारे में बताया गया है। गाने के बोल है- हो देखो रे देखो आया खरमोर आया…जब आसमान में बादल है छाया,हमारी बीड़ घर बसाया… पंछी अनोखा आया जो दुनिया मे सिर्फ भारत मे पाया।

राजनामा ने सभी पक्षो को जानने का प्रयास किया तो पता चलता है मध्यप्रदेश की मीडिया को यह खरमोर पक्षी क्यो विदेशी लगता है वही बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी व सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार अक्षय भंडारी तथ्यों के आधार पर ही भारतीय बता रहे है।

ऐसे में वन विभाग के उच्च अधिकारियों ध्यान देना चाहिए और तथाकथित मीडिया व कुछ लोग को बताना चाहिए कि वह किस आधार पर खरमोर पक्षी को विदेशी या आस्ट्रेलिया से जोड़कर देख रहे है?

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