राजनामा.कॉम। सरायकेला के डीसी के खिलाफ राज्य में सियासत गरमा गई है। कई संगठनें इसको लेकर कल विरोध की रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
बीते शनिवार को जिले के उपायुक्त के आदेश के बाद मान्यता प्राप्त पत्रकार बसंत साहू पर चांडिल बीडीओ ने चौका थाने में एफआईआर दर्ज ही न कराया अपितु गंभीर गैर जमानती धाराओं के तहत जिला पुलिस ने पिछले दरवाजे से बगैर मीडिया को जानकारी दिए बसंत साहू को जेल भेज दिया।
जबकि, पत्रकार भीड़ का हिस्सा नहीं होता है, यह कहना है सुप्रीम कोर्ट का और पत्रकार पर दर्ज किसी भी मामले कि बगैर उच्च स्तरीय जांच के उस पर एफआईआर नहीं करना है।
ऐसे में जिला पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। क्या 356 के तहत सरकारी काम में बाधा पहुंचाने संबंधी मामले की जिला पुलिस ने जांच की?
सोशल मीडिया पर ऑडियो वायरल करना यानी आईटी एक्ट का उल्लंघन करना। क्या इस मामले में आईटी एक्ट की धारा कहीं लगाई गई है? निश्चित तौर पर इस मामले में पुलिस और प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में है।
वैसे इसको लेकर राज्य स्तर पर विरोध शुरू हो चुका है। खासकर सोशल मीडिया और ट्वीटर पर जिले के उपायुक्त के कार्यों की तीखी भर्त्सना की जा रही है।
एक ओर जहां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक सेठ ने डीसी के कार्यों की कड़े शब्दों में ट्विटर पर निंदा की है। वहीं भाजपा दिग्गज (प्रतिपक्ष) बाबूलाल मरांडी ने भी सरायकेला डीसी के इस कार्य पर कड़ी आपत्ति जताई है।
साथ ही प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी मामले में संज्ञान लिया है और ट्विटर पर झारखंड सरकार और सरायकेला डीसी को जमकर फटकार भी लगाई है। वहीं राज्य भर के पत्रकारों की ओर से ट्विटर पर प्रतिक्रियाएं आ रही है।
राज्य भर में संचालित पत्रकार संगठनों ने झारखंड सरकार से मांग कर रहे हैं कि ऐसे सनकी उपायुक्त और संवेदनहीन पुलिस के वैसे पदाधिकारी, जिन्होंने बगैर इस मामले में सच्चाई जाने और जांच किए पत्रकार को जेल भेजने का काम किया, उस पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।