अन्य
    Wednesday, January 15, 2025
    अन्य

      कृपया जिम्मेदारी तलाश कीजिए मिस्टर मीडिया !

      यह असाधारण नहीं, बल्कि भीषण और भयावह है। आजादी के बाद सबसे बड़ी आफत और आपदा। पैंतालीस साल की पत्रकारिता में मैंने कभी नहीं देखा। चंद रोज पहले अपने जमाने के मशहूर संपादक रहे कमल दीक्षित ने मुझसे कहा था-साठ साल की पत्रकारिता में ऐसी घड़ी नहीं आई।

      दीक्षित जी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन कोई बीस साल से उन्होंने सरोकारों की पत्रकारिता करने के लिए मूल्यानुगत मीडिया के जरिये आंदोलन छेड़ दिया था। इस लोक से विदा होने के कुछ दिन पहले उदयपुर से फोन पर उन्होंने एक मुद्दा उठाया था।

      उन्होंने कहा था, ‘कभी अवसर आए तो देश में प्रेस क्लबों की अवधारणा पर बहस छेड़ना।’ मैंने हामी भरी थी।

      वाकई एक वाजिब सवाल है। इस देश में करीब-करीब प्रत्येक जिले में एक या दो प्रेस क्लब अस्तित्व में हैं। वे साल भर क्या करते हैं?

      किसी दिग्गज पत्रकार का निधन हो जाए तो शोकसभा करना, शहर में कोई वीआईपी आ जाए तो उसे चाय पर बुला कर मीट द प्रेस कर लेना और फुर्सत मिल जाए तो आपस में बैठकर चुनाव के नाम पर पदों को बांट लेना।

      इसके अलावा सारे देश में तो नहीं, लेकिन दिल्ली-मुंबई और कुछ प्रदेशों की राजधानियों में अपने भवन बनाकर बार और रेस्टोरेंट का लाइसेंस लेकर शाम की महफिलें आयोजित करना भी उनका एक कर्तव्य है।

      दिल्ली में तो एक पत्रिका भी क्लब प्रकाशित करता है, जो एक रचनात्मक पहल है। कुछ अन्य गतिविधियां भी इस क्लब ने आयोजित की हैं।

      तो प्रेस क्लब और क्या करें और क्यों करें? क्या सोच विचार के स्तर पर भी उनकी कोई राष्ट्रीय,राजनीतिक अथवा सामाजिक भूमिका होनी चाहिए? इस मसले पर विद्वान पत्रकारों और संपादकों के बीच दो तरह के मत हैं।

      एक धारा कहती है कि ये क्लब हैं, इसलिए वे शहर के अन्य क्लबों की तरह ही चलते रहने चाहिए। उनमें पत्रकारिता के सरोकार, मूल्य, विचार, अधिकार और अभिव्यक्ति के लिए संघर्ष करने जैसे उपक्रमों के लिए कोई स्थान नहीं रहना चाहिए।

      दूसरी धारा कहती है कि अगर इन्हें किसी बार-रेस्टोरेंट या आम क्लबों के ढर्रे पर ही चलाना है तो फिर उनके होने का अर्थ ही क्या है? पत्रकार किसी भी क्लब की मेंबरशिप ले सकते हैं। बिना वैचारिक आधार के ऐसे किसी भी संगठन का कोई औचित्य नहीं है।

      मैं इस मामले में दूसरी धारा के प्रवाह में शामिल होना चाहूंगा। अभिव्यक्ति भारत के हर नागरिक का संवैधानिक हक है। पत्रकारिता के संदर्भ में आप उसे इस पेशे की रीढ़ कह सकते हैं।

      देश-दुनिया के लिए संवेदनशील और सजग पत्रकारिता की सजग हाजिरी बेहद जरूरी है। इस नाते प्रेस क्लबों को आप इससे अलग करके नहीं देख सकते।

      क्या कोई पत्रकार कह सकता है कि किसी भी प्रेस क्लब को कोरोना के इस त्रासदी दौर में अपने सोच की पुड़िया बनाकर रख देनी चाहिए।

      माफ कीजिए। इस नाते हिंदुस्तान का कोई प्रेस क्लब कोविड काल में अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाया है। आग के शोलों के बीच जलते हुए आप उस तपिश को बीयर या शराब के ग्लास से शांत नहीं कर सकते।

      आपको अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा। उस समाज को, जिससे आपने बहुत कुछ पाया है। कृपया अपनी जिम्मेदारी तलाश कीजिए मिस्टर मीडिया ! (साभारः वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल का नियमित कॉलम मिस्टर मीडिया)

      सोशल मीडिया पर पुलिस का संदिग्धों की पहचान उजागर करना कितना उचित?

      "न्यायिक और कानून प्रवर्तन प्रणालियों को यह सुनिश्चित करना...

      दिवंगत पत्रकार के परिजनों को मिला प्रेस क्लब ऑफ सरायकेला-खरसावां का संबल

      राजनामा.कॉम। सरायकेला-खरसावां जिले के एकमात्र मान्यता प्राप्त पत्रकार संगठन...

      यूट्यूब वीडियो डाउनलोड करने से पहले जान लें मोबाइल-लैपटॉप हैक होने का खतरा

      राजनामा.कॉम। आज-कल बेहद लोकप्रिय वीडियो प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर जानकारी...

      Russia-Google dispute: कितना उचित है युद्ध मशीन की फंडिंग के लिए पुतिन द्वारा गूगल से 100 मिलियन डॉलर जब्त करना

      राजनामा.कॉम। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा गूगल से...

      Influencer Culture: सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स का उदय और उनका समाज पर प्रभाव

      राजनामा.कॉम डेस्क। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर संस्कृति (Influencer Culture) का...

      न्यूज़ कवरेज में पूर्वाग्रह और उसकी पहचान कैसे की जाए

      राजनामा.कॉम डेस्क। न्यूज़ कवरेज में पूर्वाग्रह का अर्थ है...

      फेक न्यूज की पहचान कैसे करें और उसके प्रभाव को कैसे रोका जाए

      राजनामा.कॉम डेस्क। फेक न्यूज एक प्रकार की झूठी या...

      Social Media for the Youth : युवा वर्ग के लिए कितना खतरनाक और फायदामंद है सोशल मीडिया

      राजनामा.कॉम। सोशल मीडिया (Social Media) का उद्भव 21वीं सदी...

      News papers in India : भारत में समाचार पत्रों की घटती विश्वसनीयता की जानें मूल वजहें

      राजनामा.कॉम। भारत में समाचार पत्रों की घटती विश्वसनीयता एक...
      error: Content is protected !!