आज कल मीडिया में बातें बड़ी-बड़ी होती है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का तो कोई सानी नहीं है. सबसे बड़ी शर्मनाक स्थिति न्यूज़ चैनलों की है. रांची-पटना से लेकर देश के छोटे-मोटे हर शहरों में कुकुरमुत्ते की तरह उगे इन चैनलों से आखिर दिखाया क्या जा रहा है..निकम्मे नेताओं-अफसओं की सूरत या नामी-गिरामी चैनलों से चुराकर अश्लीलता..क्या कोई दर्शक गालियां सुनकर गुदगुदा सकता है…कॉमेडी कटिंग के नाम पर समाचारों के बीच सार्वजनिक तौर प्रबंधित शब्दों के बौछार को किस श्रेणी में रखने के काबिल है..किसी भी दर्शक-श्रोता परिवार के बच्चे भी आसानी से निर्धारित कर सकता है…चीख-चीख कर अपराधिक गतिविधियों को अइसे परोसना…जैसे अपराध और अपराधी की व्याख्या के साथ सज़ा देने का अधिकार न्यायालय को नहीं…बल्कि गटर छाप न्यूज़ चैनलों की बपौती है.

एक विश्व स्तरीय वेबसाइट,जो भारतीय मीडिया के कार्यक्रमों का गहन सर्वेक्षण किया है. इस वेबसाइट ने क्षेत्रीय न्यूज़ चैनलों के बारे में जो आकड़े प्रस्तुत किए हैं…वे काफी शर्मशार करने वाले हैं….देश में 90 फीसदी चैनल नकारात्मक समाचारों को मिर्च-मसाले लगाकर परोसते रहते हैं..सकारात्मक खबरों को वे या तो पचा जाते हैं….या अइसे विचार धारी पत्रकारों को दूध की मक्खी समझते हैं.
सर्वेक्षण के अनुसार 82.076 फीसदी अइसे खबरिया चैनल हैं…जिनका सिर्फ लिबास खबरिया है…… असलियत में वे ओछी मनोरंजन के सहारे बाजार में धौंस जमाते हैं…और प्रेस की आड़ में चैनलकर्मी अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं…वहीं चैनल मालिक अपनी काली कमाई पर सफेदी पोतते हैं,
यदि हम बिहार-झारखंड में खबरिया चैनलों का आंकलन करें तो एक-दो को छोड़…शायद ही कोई चैनल क्षुद्र नौटंकी कंपनी नजर न आए..क्या आप चाहते हैं कि टीवी पत्रकारिता…जिसके भी कुछ आदर्श मापदंड होते हैं…उसकी छतरी में बैठ असमाजिक तत्वों को हुजूम नंगई करते रहे….अगर नहीं तो फिर सोचिए..जागिए…और अइसे चैनलों को देखना-सुनना छोड़िए..क्योंकि ये आपको भ्रमित ही नही कर रहे..बल्कि आपके घर-परिवार में जो मासूम भविष्य खिल रहे हैं..उसके विचारों को दूषित कर रहे हैं…… यदि आप नही माने तो आने वाले दिनों में इसके दंश आपको ही झेलने होंगे…समूचे समाज को झेलने होंगे…