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    Thursday, May 9, 2024
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      प्रिंट मीडिया पर कोविड-19 का पड़ा अधिक कुप्रभाव

      दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, ईनाडु, हिन्दुस्तान, पत्रिका ग्रुप, अमर उजाला, डेली थांथी, साक्षी, डेक्कन हेराल्ड, हिन्दुस्तान टाइम्स और दिव्य भास्कर समेत तमाम अखबारों ने अप्रैल के दूसरे हफ्ते में संयुक्त रूप से एक स्टेटमेंट जारी कर बताया कि फरवरी के आधार पर अखबारों का वितरण किस तरह 75 से 90 प्रतिशत तक स्थिर हो गया...

      राजनामा.कॉम डेस्क। साल भर तमाम उतार-चढ़ावों के बीच प्रिंट मीडिया एक बार फिर रफ्तार पकड़ने लगा है और तमाम अन्य बिजनेस की तरह नुकसान से उबरने की कोशिश कर रहा है। ऐसे समय में जब प्रिंट मीडिया पुनरुत्थान की ओर बढ़ रहा है, इस ग्रोथ में क्षेत्रीय समाचार पत्र अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

      इस साल की शुरुआत तमाम अखबारों के लिए खराब रही, क्योंकि कोरोनावायरस (कोविड-19) का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के कारण उनका सर्कुलेशन काफी बाधित हुआ। मुंबई और दिल्ली जैसे कई बड़े मार्केट्स में तमाम अखबार पब्लिशिंग रोकने पर मजबूर हो गए। 

      इसका सीधा नतीजा विज्ञापन बिलों पर पड़ा और इसके परिणामस्वरूप इस सेक्टर को काफी नुकसान हुआ, जो 2019-20 की आखिरी तिमाही में ही नहीं बल्कि नए वित्त वर्ष की लगातार दो तिमाहियों में भी दिखाई दिया।

      इस महामारी ने देश में पहले से ही परेशानियों से जूझ रही न्यूजपेपर इंडस्ट्री की समस्या और बढ़ा दी। सिर्फ छोटे ब्रैंड्स ही नहीं, बल्कि इस इंडस्ट्री के बड़े प्लेयर्स को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। 

      बिजनेस इंटेलीजेंस फर्म टोफलरद्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, ‘बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेडने 31 मार्च को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के लिए 451.63 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्शाया, जबकि इससे पहले वित्तीय वर्ष में इसे 484.27 करोड़ रुपये का कुल लाभ हुआ था।

      कंपनी का ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्यू भी  6,155.32 रुपये से घटकर 5,367.88 करोड़ रुपये रह गया। पब्लिकेशंस की बिक्री से मिलने वाले रेवेन्यू में भी गिरावट आई और यह 656.09 करोड़ रुपये से घटकर 629.96 करोड़ रुपये पर आ गया। सर्कुलेशन में कमी और विज्ञापनदाताओं की गैरमौजूदगी के कारण न्यूजपेपर इंडस्ट्री के लिए मार्केट काफी समय तक सूखा रहा। लेकिन प्रिंट ने मजबूती से लड़ाई की और वापसी की। 

      अप्रैल की बात करें तो स्थिति को देखते हुए तमाम अखबारों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू की, इसके साथ ही जब सरकार ने अखबारों को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में शामिल किया तो प्रिंट पब्लिकेशंस को फिर मजबूती मिली।

      दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, ईनाडु, हिन्दुस्तान, पत्रिका ग्रुप, अमर उजाला, डेली थांथी, साक्षी, डेक्कन हेराल्ड, हिन्दुस्तान टाइम्स और दिव्य भास्कर समेत तमाम अखबारों ने अप्रैल के दूसरे हफ्ते में संयुक्त रूप से एक स्टेटमेंट जारी कर बताया कि फरवरी के आधार पर अखबारों का वितरण किस तरह 75 से 90 प्रतिशत तक स्थिर हो गया।

      अगले महीने इंडियन रीडरशिप सर्वे’ (IRS) के आंकड़े आए। इसमें रीजनल अखबारों का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा और उन्होंने इस सेक्टर की ग्रोथ में अहम भूमिका निभाई। 

      मई में जारी इंडियन रीडरशिप सर्वे की रिपोर्ट 2019 की पिछली तीन तिमाही यानी पहली (Q1), दूसरी (Q2) और तीसरी तिमाही (Q3) के साथ चौथी तिमाही के ताजा आंकड़ों के औसत पर आधारित था। इससे पता चला कि विभिन्न केंद्रों पर रीडरशिप में कमी आई है। हालांकि, गहनता से अध्ययन करने पर स्पष्ट हुआ कि मेट्रो शहरों के बाहर रीजनल एरिया में पब्लिशर्स की ग्रोथ ज्यादा हुई। 

      कुछ प्रादेशिक अखबारों की टोटल रीडरशिप में बढ़ोतरी देखी गई, जबकि कुछ की एवरेज इश्यू रीडरशिप में बढ़ोतरी दर्ज की गई। हालांकि, देश के कुछ लोकप्रिय ब्रैंड्स जैसे अमर उजाला, लोकमत, दैनिक थांथी ने दोनों में बढ़ोतरी दर्ज की।

      जुलाई में सरकार ने सरकारी विज्ञापनों के लिए नई गाइडलाइंस जारी कीं। प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति 2020 जिसे सरकारी विज्ञापनों की व्यापक संभव कवरेज के लिए तैयार किया गया था, भारतीय भाषा के दैनिक समाचार पत्रों के लिए फायदेमंद साबित हुई। क्योंकि इसमें विज्ञापन स्पेस भी बढ़ाकर 50 से 80 प्रतिशत कर दिया गया। इसके अलावा नई पॉलिसी में प्रिंट में विज्ञापन का संतुलित डिस्ट्रीब्यूशन तय किया गया।  

      एक अगस्त 2020 से प्रभावी इन गाइडलाइंस में कहा गया है कि सरकार के सभी मंत्रालय या विभाग, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, स्वायत्त निकाय और सोसायटीज, केंद्रीय विश्वविद्यालय और भारत सरकार के सभी शैक्षणिक संस्थान अपने डिस्पले विज्ञापनों को ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशनके माध्यम से देंगे।

      इन गाइडलाइंस में साफ कहा गया है कि विज्ञापनों को जारी करते समय बीओसी सर्कुलेशन, भाषा, कवरेज क्षेत्र और पाठकों जैसे कारकों की विभिन्न श्रेणियों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करेगी।

      जुलाई में प्रिंट की ओर एडवर्टाइजर्स फिर वापस आना शुरू हुए, जिसकी इंडस्ट्री को काफी जरूरत थी। हालांकि, रिकवरी की रफ्तार टियर-दो और टियर-तीन शहरों में अधिक थी। टैम एडेक्स के डाटा के अनुसार, प्रिंट पर वापसी करने वाले विज्ञापनदाताओं में 75 प्रतिशत हिंदी और अंग्रेजी भाषा के थे। 

      राज्यों की हिस्सेदारी की बात करें तो 17 प्रतिशत ऐड वॉल्यूम शेयर के साथ उत्तर प्रदेश इस लिस्ट में सबसे ऊपर था, इसके बाद 10 प्रतिशत शेयर के साथ महाराष्ट्र और इसके बाद कर्नाटक व तमिलनाडु का नंबर था। 

      टैम डाटा के अनुसार, अप्रैल से जून की अवधि में 189 कैटेगरीज में 28000 से ज्यादा एडवर्टाइजर्स और 31300 से ज्यादा ब्रैंड्स ने खासतौर पर प्रिंट के लिए विज्ञापन दिया। एडवर्टाइजर्स की वापसी के कारण 13 अगस्त को दैनिक भास्कर ने अपने भोपाल एडिशन को 72 पेज का निकाला।

      इस दौरान दैनिक भास्कर में जिन सेक्टर्स के विज्ञापन दिए गए, उनमें रियल एस्टेट, इलेक्ट्रॉनिक ड्यूरेबल्स, ऑटोमोबाइल और एफएमसीजी शामिल रहे। इस पब्लिकेशन को सरकारी विज्ञापन भी प्राप्त हुए। अगस्त के पहले सप्ताह से टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी दिल्ली, गुरुग्राम, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे तमाम प्रमुख मार्केट्स में 30-40 से ज्यादा पेजों का अखबार पब्लिश करना शुरू कर दिया। 

      पिच मैडिसन एडवर्टाइजिंग रिपोर्ट 2020 के मिड ईयर रिव्यू के अनुसार, विज्ञापन देने वालों में एफएमसीजी, ऑटो और एजुकेशन जैसी कैटेगरीज आगे रहीं और वर्ष 2020 की पहली छमाही में प्रिंट पर विज्ञापन खर्च के मामले में इनका योगदान करीब 45 प्रतिशत रहा, जो वर्ष 2019 में 38 प्रतिशत था।  

      प्रिंट पर विज्ञापन खर्च के मामले में एजुकेशन सेक्टर 16 प्रतिशत शेयर के साथ एफएमसीजी सेक्टर से आगे निकल गया। एफएमसीजी सेक्टर 15 प्रतिशत शेयर के साथ दूसरे स्थान पर आ गया। प्रिंट पर विज्ञापन खर्च के मामले में ऑटो इंडस्ट्री 14 प्रतिशत शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रही। फेस्टिव सीजन प्रिंट के लिए काफी अच्छा रहा।

      विशेषज्ञों के अनुसार, इस दौरान टेलिविजन न्यूज को लेकर चल रहीं तमाम तरह की बहस ने भी प्रिंट को लाभ पहुंचाने में और मदद की। टैम एडेक्स डाटा के अनुसार, अन्य किसी ट्रेडिशनल मीडिया की तुलना में प्रिंट मीडिया को वर्ष 2019 और वर्ष 2020 दोनों में अक्टूबर से नवंबर के बीच काफी ज्यादा एडवर्टाइजर्स मिले।

      टीवी में इस साल अक्टूबर से नवंबर के बीच जहां 3400 एडवर्टाइजर्स मिले और रेडियो में इन एडवर्टाइजर्स की संख्या 2800 से कम थी, वहीं इसी अवधि में प्रिंट को 30900 से ज्यादा एडवर्टाइजर्स मिले।

      हालांकि, साल के अंत से प्रिंट का रेवेन्यू बढ़ना शुरू हुआ है, लेकिन इंडस्ट्री के लिए इससे बुरा समय नहीं हो सकता, जब नुकसान के चलते उन्हें काफी कॉस्ट कटिंग करनी पड़ी। इसके परिणामस्वरूप कई लोगों को नौकरी से हटाया गया अथवा उनकी सैलरी में कटौती करनी पड़ी।

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