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      न्यूज पोर्टल के पत्रकार की गिरफ्तारी पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने जताई चिंता, उठाई ये मांग

      एडिटर्स गिल्ड ने उत्तराखंड प्रशासन से एक पत्रकार की तत्काल रिहाई की मांग की है, जिसे हाल ही में सूबे की पुलिस ने जातियों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया था….

      राजनामा.कॉम। संपादकों के निकाय एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने गुरुवार को उत्तराखंड प्रशासन से एक पत्रकार की तत्काल रिहाई की मांग की है, जिसे हाल ही में उत्तराखंड पुलिस ने जातियों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

      एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि पुलिस ने न्यूज पोर्टल ‘जंजवार’ के लिए काम करने वाले किशोर राम को 24 फरवरी को पिथौरागढ़ से भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए के तहत जातियों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

      गिल्ड ने एक बयान में कहा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया न्यूज पोर्टल जंजवार के लिए काम करने वाले पत्रकार किशोर राम की उत्तराखंड पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी से बेहद व्यथित है।’

      बयान में कहा गया, ‘जातियों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में राम को भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए के तहत गिरफ्तार किया गया है। यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि राम कुछ समय से हाशिए पर पड़े वर्गों और निचली जातियों से संबंधित मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते रहे हैं।’

      गिल्ड ने उल्लेख किया कि राम के खिलाफ दो अलग-अलग घटनाओं पर रिपोर्टिंग को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें एक घटना 13 फरवरी को एक दलित युवक की मौत से संबंधित है, तो वहीं दूसरी घटना 18 फरवरी को कम उम्र की दो दलित महिलाओं के बलात्कार से संबंधित है।

      गिल्ड ने कहा कि दोनों मामलों में राम ने उन लोगों का साक्षात्कार लिया, जो परिवार के सदस्यों सहित पीड़ितों को जानते थे और वीडियो वेबसाइट पर अपलोड किया था।

      इसने कहा, ‘पुलिस ने अपनी शिकायत में राम पर परिवार के सदस्यों से लोगों की जाति पूछने और उच्च जाति के लोगों द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों की हत्या के बारे में बोलने का आरोप लगाया है।’

      गिल्ड ने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि केवल जाति आधारित अपराधों की रिपोर्टिंग को गिरफ्तारी के आधार के रूप में उद्धृत किया जा रहा है।

      बयान में कहा गया, ‘एडिटर्स गिल्ड किशोर राम की तत्काल रिहाई की मांग करता है।’

      गिल्ड ने राज्य प्रशासन और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से ‘सामाजिक और जाति आधारित मुद्दों पर रिपोर्ट करने के पत्रकारों के अधिकार के खिलाफ धमकी के औजार’ के रूप में दंड कानूनों का उपयोग न करने का भी आग्रह किया।

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