राजनामा.कॉम। झारखंड सरकार वर्तमान सरकार के सत्ता पर आने के बाद एक “जुमला” खूब प्रचलित हुआ था “हेमंत है, तो हिम्मत है” मगर वह जुमला अब पता चल रहा है कि किसके लिए था।
दरअसल वह जुमला हिम्मती हेमंत सोरेन सरकार के सिपहसालारों और कानून के रखवाले के लिए था। जो इस जुमले का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। वह भी पत्रकार जैसे निरीह प्राणियों पर।
मगर अपने आका के आदेशों और पोल खुलने से आक्रोशित संतरियों ने आधी रात को बीच सड़क पर थाना गेट के बाहर पत्रकार को पीट पीटकर अधमरा कर दिया और उसकी मोबाइल तोड़ डाली ताकि सारे सबूत नष्ट हो जाए। पत्रकार गिड़गिड़ाता रहा मगर थाना कर्मियों ने उसकी एक न सुनी।
थाना कर्मियों का हैवानियत यहीं समाप्त नहीं हुआ, आधी रात को पत्रकार की पिटाई के बाद थानाकर्मी उसे अधमरा छोड़ बीच सड़क पर वापस थाने के भीतर चले गए। वो तो भला हो स्थानीय ग्रामीणों का, जिन्होंने पत्रकार को आधी रात को ईचागढ़ अस्पताल पहुंचाया। जहां पत्रकार की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए शनिवार सुबह उसे बेहतर इलाज के लिए जमशेदपुर स्थित एमजीएम अस्पताल रेफर किया गया। आज भी पत्रकार एमजीएम अस्पताल में ईलाजरत है।
इधर मामला बिगड़ता देख थानेदार ने कायराना हरकत कर डाली, और पत्रकार सहित 7 ग्रामीणों पर आईपीसी की धारा 143, 147, 149, 363 जैसे धाराएं लगाकर उसे अपराधी करार दे दिया। जो शोषल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है।
वहीं मामले पर रांची सांसद संजय सेठ ने संज्ञान लेते हुए तत्काल राज्य झारखंड पुलिस, सरायकेला डीसी और सरायकेला एसपी से रिपोर्ट तलब किया है।
इससे पूर्व पत्रकार पर हुए इस हिंसक कार्रवाई का भाजपा प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए जमशेदपुर उपायुक्त से पत्रकार को अस्पताल में बेड मुहैया कराने और बेहतर ईलाज कराने की अपील की थी, जिसे जमशेदपुर डीसी ने संज्ञान लेते हुए मुहैया करा दिया।
इधर मामले पर पत्रकार संगठन द प्रेस क्लब ऑफ सरायकेला-खरसावां ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तिरुलडीह थाना प्रभारी पर कार्रवाई की मांग की है। अब सवाल ये उठता है कि पत्रकार को पिटाई का अधिकार किसने दिया ?
थाना प्रभारी सीसीटीवी फुटेज के साथ यह साबित कर दे कि पत्रकार द्वारा बदसलूकी की गई थी, या पत्रकार ने सरकारी काम में बाधा उत्पन्न किया है।
साथ ही वो बालू गाड़ी कहां गए, जिसे ग्रामीणों द्वारा पकड़कर थाना गेट तक ले जाया गया था। वैसे तिरुलडीह थाना प्रभारी के इस कुकृत्य ने इतना तो साफ कर दिया है कि तिरुलडीह में अवैध बालू का खेल धड़ल्ले से चल रहा था, जिसका भेद खुलने के डर से वहां के प्रभारी ने पहले पत्रकार को पिटवाया, उसके बाद साक्ष्य मिटाने के उद्देश्य से उसकी मोबाइल तुड़वाई, फिर मानवीय संवेदना को ताक पर रखते हुए उसे बीच सड़क पर नक्सल प्रभावित क्षेत्र की सड़कों पर अधमरा छोड़ दिया।
क्यों नहीं थानेदार पर अटेम्प्ट टू मर्डर (307) के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए! वैसे संभव है कि जिले के पत्रकार मामले पर सख्त रुख अपना सकते हैं।
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