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    Sunday, December 22, 2024
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      अमिताभ बच्चन: बॉलीवुड के सबसे सफल अभिनेता

      अमिताभ बच्चन (जन्म-11 अक्तूबर) बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय अभिनेता है।

      1970 के दशक के दौरान उन्होंने बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की और तबसे भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे प्रमुख व्यक्तित्व बन गए हैं।

      amitabhfaimily1बच्चन ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और बारह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार शामिल है। उनके नाम सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फिल्मफेयर अवार्ड का रिकार्ड है। अभिनय के अलावा बच्चन ने पार्श्वगायक, फिल्म निर्माता और टीवी प्रस्तोता और भारतीय संसद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में 1984 से 1987 तक भूमिका की हैं।
      बच्चन का विवाह अभिनेत्री जया भादुड़ी से हुआ है। इनके दो संतान हैं, श्वेता नंदा और अभिषेक बच्चन, जो एक अभिनेता भी हैं और जिनका विवाह  विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय से हुआ है।
      इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, में जन्मे अमिताभ बच्चन हिंदू कायस्थ परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता, डॉ। हरिवंश राय बच्चन प्रसिद्ध हिन्दी कवि थे, जबकि उनकी मां तेजी बच्चन कराची के सिख परिवार से संबंध रखती थीं (अब पाकिस्तान) में। आरंभ में बच्चन का नाम इंकलाब रखा गया था। जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रयोग में किए गए प्रेरित वाक्यांश इंकलाब जिंदाबाद, से लिया गया था, लेकिन बाद में इनका फिर से अमिताभ नाम रख दिया गया जिसका अर्थ है, ऐसा प्रकाश जो कभी नहीं बुझेगा। यद्यपि इनका अंतिम नाम श्रीवास्तव था। फिर भी इनके पिता ने इस उपनाम को अपने कृतियों को प्रकाशित करने वाले बच्चन नाम से उद्धृत किया। यह उनका अंतिम नाम ही है,जिसके साथ उन्होंने फिल्मों में एवं सभी सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किया अब यह उनके परिवार के समस्त सदस्यों का उपनाम बन गया है।
      अमिताभ, हरिवंश राय बच्चन के दो बेटो में सबसे बड़े हैं । उनके दूसरे बेटे का नाम अजिताभ है। इनकी माता की थिएटर में गहरी रुचि थी और उन्हें फिल्म में भी रोल की पेशकश की गई थी,किंतु इन्होंने गृहणि बनना ही पसंद किया। अमिताभ के कैरियर के चुनाव में इनकी माता का भी कुछ हिस्सा था,क्योंकि वे हमेशा इस बात पर भी जोर देती थी कि उन्हें सेंटर स्टेज को अपना कैरियर बनाना चाहिए। बच्चन के पिता का देहांत 2003 में हो गया था जबकि उनकी माता की मृत्यु 21 दिसंबर 2007 को हुई थीं।
      बच्चन ने दो बार एम। ए। की उपाधि ग्रहण की है। मास्टर ऑफ आर्ट्स (स्नातकोत्तर) इन्होंने इलाहाबाद के ज्ञान प्रबोधिनी और बॉयज़ हाई स्कूल (बीएचएस) तथा उसके बाद नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढाई की जहां कला संकाय में प्रवेश दिलाया गया। उन्होंने बाद अध्ययन करने के लिए ये दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज चले गए जहां इन्होंने विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपनी आयु के 20 के दशक में बच्चन ने अभियन में अपना कैरियर आजमाने के लिए कोलकता की एक शिपिंग फर्म बर्ड एंड कंपनी में किराया ब्रोकर की नौकरी छोड़ दी।
      3 जून, 1973 को इन्होंने बंगाली संस्कार के अनुसार अभिनेत्री जया भादुड़ी से विवाह कर लिया। इस दंपती के दो बच्चों: बेटी श्वेता और पुत्र अभिषेक पैदा हुए।
      कैरियरःआरंभिक कार्य १९६९ -१९७२
      अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में अपने कैरियर की शुरूआत ख्वाज़ा अहमद अब्बास  के निर्देशन में बनी सात हिंदुस्तानी, के सात कलाकारों में एक कलाकार के रूप में की। उत्पल दत्त, मधु और जलाल आगा जैसे कलाकारों के सामने अभिनय फ़िल्म ने वित्तीय सफ़लता प्राप्त नहीं की पर बच्चन ने अपनी पहली फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ नवागंतुक का पुरूस्कार जीता। इस सफल व्यावसायिक और समीक्षित फिल्म के बाद उनकी एक और आनंद ( 1971) नामक फिल्म आई जिसमें उन्होंने उस समय के लोकप्रिय कलाकार राजेश खन्ना जैसे कलाकार के साथ काम किया था। डॉ; भास्कर बनर्जी की भूमिका करने वाले बच्चन ने कैंसर के एक रोगी का उपचार किया जिसमें उनके पास जीवन के प्रति वेबकूफी और देश की वास्तविकता के प्रति उसके द़ष्टिकोण के कारण उसे अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद अमिताभ ने (1971) में बनी परवाना में एक मायूस प्रेमी की भूमिका निभाई जिसमें इसके साथी कलाकारों में नवीन निश्चल, योगिता बाली और ओम प्रकाश थे और इन्हें खलनायक के रूप में फिल्माना अपने आप में बहुत कम देखने को मिलने जैसी भूमिका थी। इसके बाद उनकी कई फिल्में आई जो बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं हो पाई जिनमें रेशमा और शेरा (1971) भी शामिल थी और उन दिनों इन्होंने गुड्डी फिल्म में मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई थी। इनके साथ इनकी पत्नी जया भादुड़ी के साथ धर्मेन्द्र भी थे। अपनी जबरदस्त आवाज के लिए जाने जाने वाले अमिताभ बच्चन ने अपने कैरियर के प्रारंभ में ही उन्होंने बावर्ची फिल्म के कुछ भाग का बाद में वर्णन किया। १९७२ में निर्देशित एस। रामनाथन द्वारा निर्देशित कामेडी फिल्म बॉम्बे टू गोवा में भूमिका निभाई। इन्होंने अरूणा ईरानी, महमूद, अनवर अली और नासिर हुसैन जैसे कलाकारों के साथ कार्य किया है। अपने संघर्ष के दिनों में वे सात वर्ष की लंबी अवधि तक अभिनेता, निर्देशक एवं हास्य अभिनय के बादशाह महमूद साहब के घर में रूके रहे।
      स्टारडम की ओर उत्थान 1973-1983
      1973 में जब प्रकाश मेहरा ने इन्हें अपनी फिल्म जंजीर  में इंस्पेक्टर विजय खन्ना की भूमिका के रूप में अवसर दिया तो यहीं से इनके कैरियर में प्रगति का नया मोड़ आया। यह फ़िल्म इससे पूर्व के रोमांस भरे सार के प्रति कटाक्ष था जिसने अमिताभ बच्चन को एक नई भूमिका एंग्री यंगमैन में देखा जो बालीवुड के एक्शन हीरो बन गए थे, यही वह प्रतिष्‍ठा थी जिसे बाद में इन्हें अपनी फिल्मों में हासिल करते हुए उसका अनुसरण करना था। बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाने वाले एक जबरदस्त अभिनेता के रूप में यह उनकी पहली फिल्म थी, जिसने उन्हें सर्वश्रेष्‍ठ पुरूष कलाकार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए मनोनीत करवाया। 1973 ही वह साल था जब इन्होंने ३ जून को जया से विवाह किया और इसी समय ये दोनों न केवल जंजीर में बल्कि एक साथ कई फिल्मों में दिखाई दिए जैसे अभिमान जो इनकी शादी के केवल एक मास बाद ही रिलीज हो गई थी। बाद में हृषिकेश मुखर्जी के निदेर्शन तथा बीरेश चटर्जी द्वारा लिखित नमक हराम  फिल्म में विक्रम की भूमिका मिली जिसमें दोस्ती के सार को प्रदर्शित किया गया था। राजेश खन्ना और रेखा के विपरीत इनकी सहायक भूमिका में इन्हें बेहद सराहा गया और इन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
      1974 की सबसे बड़ी फिल्म रोटी कपड़ा और मकान में सहायक कलाकार की भूमिका करने के बाद बच्चन ने बहुत सी फिल्मों में कई बार मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई जैसे कुंवारा बाप और दोस्तमनोज कुमार द्वारा निदेशित और लिखित फ़िल्म जिसमें दमन और वित्तीय एवं भावनात्मक संघर्षों के समक्ष भी ईमानदारी का चित्रण किया गया था, वास्तव में आलोचकों एवं व्यापार की दृष्टि से एक सफल फ़िल्म थी और इसमें सह कलाकार की भूमिका में अमिताभ के साथी के रूप में कुमार स्वयं और शशि कपूर एवं जीनत अमान थीं। बच्चन ने 6दिसंबर 1974 को रिलीज मजबूर फिल्म में अग्रणी भूमिका निभाई यह फिल्म हालीवुड फिल्म जिगजेग की नकल कर बनाई थी जिसमें जार्ज कैनेडी अभिनेता थे, किंतु बॉक्स ऑफिस पर यह कुछ खास नहीं कर सकी और 1975 में इन्होंने हास्य फिल्म चुपके चुपके, से लेकर अपराध पर बनी फिल्म फरार और रोमांस फिल्म मिली में अपने अभिनय के जौहर दिखाए। तथापि, 1975 का वर्ष ऐसा वर्ष था जिसमें इन्होंने दो फिल्मों में भूमिकाएं की और जिन्हें हिंदी सिनेमा जगत में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्होंने यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म दीवार में मुख्‍य कलाकार की भूमिका की जिसमें इनके साथ शशि कपूर, निरूपा राय और नीतू सिंह थीं और इस फिल्म ने इन्हें सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार दिलवाया। 1975 में यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रहकर चौथे  स्थान पर रही और इंडियाटाइम्स की मूवियों में बॉलीवुड की हर हाल में देखने योग्य शीर्ष 25 फिल्मों  में भी नाम आया। 15अगस्त, 1975 को रिलीज शोले ( अर्थ आग  है और भारत में किसी भी समय की सबसे ज्यादा आय अर्जित करने वाली फिल्‍म बन गई है जिसने 2,36,45,00000 रू०  कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डालर के बराबर हैं। बच्चन ने इंडस्ट्री के कुछ शीर्ष के कलाकारों जैसे धर्मेन्‍द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जया बच्चन और अमजद खान के साथ जयदेव की भूमिका अदा की थी। 1999 में बीबीसी इंडिया ने इस फिल्म को शताब्दी की फिल्म का नाम दिया और दीवार की तरह इसे इंडियाटाइम्‍ज़ मूवियों में बालीवुड की शीर्ष 25 फिल्‍मों में शामिल किया। उसी साल 50वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फिल्मफेयर पुरूस्कार था। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बच्चन ने अब तक अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था और 1976 से 1984 तक उन्हें अनेक सर्वश्रेष्ठ कलाकार वाले फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और अन्य पुरस्कार एवं ख्याति मिली। हालांकि शोले जैसी फिल्मों ने बालीवुड में उसके लिए पहले से ही महान एक्शन नायक का दर्जा पक्का कर दिया था, फिर भी बच्चन ने बताया कि वे दूसरी भूमिकाओं में भी स्वयं को ढाल लेते हैं और रोमांस फिल्मों में भी अग्रणी भूमिका कर लेते हैं जैसे कभी कभी (1976) और कामेडी फिल्मों जैसे अमर अकबर एन्थनी (1977) और इससे पहले भी चुपके चुपके (1975) में काम कर चुके हैं। 1976 में इन्हें यश चोपड़ा ने अपनी दूसरी फिल्म कभी कभी में साइन कर लिया यह और एक रोमांस की फिल्म थी, जिसमें बच्चन ने एक अमित मल्‍होत्रा के नाम वाले युवा कवि की भूमिका निभाई थी जिसे राखी गुलजार द्वारा निभाई गई पूजा नामक एक युवा लड़की से प्रेम हो जाता है। इस बातचीत के भावनात्मक जोश और कोमलता के विषय अमिताभ की कुछ पहले की एक्शन फिल्मों तथा जिन्हें वे बाद में करने वाले थे की तुलना में प्रत्यक्ष कटाक्ष किया। इस फिल्‍म ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया और बॉक्स ऑफिस पर यह एक सफल फिल्म थी। 1977 में इन्होंने अमर अकबर एन्थनी में अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। इस फिल्म में इन्होंने विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ एनथॉनी गॉन्सॉलनेज़ के नाम से तीसरी अग्रणी भूमिका की थी। 1978 संभवत: इनके जीवन का सर्वाधिक प्रशेषनीय वर्ष रहा और भारत में उस समय की सबसे अधिक आय अर्जित करने वाली चार फिल्मों में इन्होंने स्टार कलाकार की भूमिका निभाई। इन्‍होंने एक बार फिर कस्में वादे]) जैसी फिल्मों में अमित और शंकर तथा डॉन में अंडरवर्ल्ड गैंग और उसके हमशक्ल विजय के रूप में दोहरी भूमिका निभाई।इनके अभिनय ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार दिलवाए और इनके आलोचकों ने त्रिशूल और मुकद्दर का सिकंदर जैसी फिल्मों में इनके अभिनय की प्रशंसा की तथा इन दोनों फिल्मों के लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इस पड़ाव पर इस अप्रत्याशित दौड़ और सफलता के नाते इनके कैरियर में इन्हें फ्रेन्‍काइज ट्रूफोट नामक निर्देशक द्वारा वन मेन इंडस्ट्री का नाम दिया।
      1979 में पहली बार अमिताभ को मि० नटवरलाला नामक फिल्म के लिए अपनी सहयोगी कलाकार रेखा के साथ काम करते हुए गीत गाने के लिए अपनी आवाज का उपयोग करना पड़ा।फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पुरुष पार्श्‍वगायक का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार मिला। 1979 में इन्हें काला पत्थर   सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया और इसके बाद 1980 में राजखोसला द्वारा निर्देशित फिल्म दोस्ताना में दोबारा नामित किया गया जिसमें इनके सह कलाकार शत्रुघन सिन्हां और जीनत अमान थीं। दोस्ताना वर्ष 1980 की शीर्ष फिल्म साबित हुई। 1981 में इन्होंने यश चोपड़ा की नाटकीयता फ़िल्म सिलसिला में काम किया, जिसमें इनकी सह कलाकार के रूप में इनकी पत्नी जया और अफ़वाहों में इनकी प्रेमिका रेखा थीं। इस युग की दूसरी फिल्मों में राम बलराम (1980), शान (1980), लावारिस (1981) और शक्ति (1982) जैसी फिल्‍में शामिल थीं, जिन्‍होंने दिलीप कुमार जैसे अभिनेता से इनकी तुलना की जाने लगी थीं।
      1982 के दौरान कुली की शूटिंग के दौरान चोट
      1982 में कुली  फिल्म में बच्चन ने अपने सह कलाकार पुनीत इस्सर  के साथ एक फाइट की शूटिंग के दौरान अपनी आंतों को लगभग घायल कर लिया था। बच्चन ने इस फिल्म में स्टंट अपनी मर्जी से करने की छूट ले ली थी जिसके एक सीन में इन्हें मेज पर गिरना था और उसके बाद जमीन पर गिरना था। हालांकि जैसे ही ये मेज की ओर कूदे तब मेज का कोना इनके पेट से टकराया जिससे इनके आंतों को चोट पहुंची और इनके शरीर से काफी खून बह निकला था। इन्हें जहाज से तुरंत स्पलेनक्टोमी के उपचार हेतु अस्पताल ले जाया गया और वहां ये कई महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहे और कई बार मौत के मुंह में जाते जाते बचे। यह अफ़वाह भी फैल भी गई थी, कि वे एक दुर्घटना में मर गए हैं और संपूर्ण देश में इनके चाहने वालों की भारी भीड इनकी रक्षा के लिए दुआएं करने में जुट गयी थी।इस दुर्घटना की खबर दूर दूर तक फैल गई और यूके के अखबारों की सुर्खियों में छपने लगी जिसके बारे में कभी किसने सुना भी नहीं होगा। बहुत से भारतीयों ने मंदिरों में पूजा अर्चनाएं की और इन्हें बचाने के लिए अपने अंग अर्पण किए और बाद में जहां इनका उपचार किया जा रहा था उस अस्पताल के बाहर इनके चाहने वालों की मीलों लंबी कतारें दिखाई देती थी। यह फिल्म 1983 में रिलीज हुई और आंशिक तौर पर बच्चन की दुर्घटना के असीम प्रचार के कारण बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।
      निर्देशक मनमोहन देसाई   ने कुली   फिल्म में बच्चन की दुर्घटना के बाद फ़िल्म के कहानी का अंत बदल दिया था। इस फिल्म में बच्चन के चरित्र को वास्तव में मृत्यु प्राप्त होनी थी लेकिन बाद में स्क्रिप्‍ट में परिवर्तन करने के बाद उसे अंत में जीवित दिखाया गया। देसाई ने इनके बारे में कहा था कि ऐसे आदमी के लिए यह कहना बिल्‍कुल अनुपयुक्त होगा कि जो असली जीवन में मौत से लड़कर जीता हो उसे परदे पर मौत अपना ग्रास बना ले। इस रिलीज फिल्म में पहले सीन के अंत को जटिल मोड़ पर रोक दिया गया था और उसके नीचे एक केप्‍शन प्रकट होने लगा जिसमें अभिनेता के घायल होने की बात लिखी गई थी और इसमें दुर्घटना के प्रचार को सुनिश्चित किया गया था।
      बाद में ये मियासथीनिया ग्रेविस  में उलझ गए जो या कुली में दुर्घटना के चलते या तो भारीमात्रा में दवाई लेने से हुआ या इन्हें जो बाहर से अतिरिक्त रक्त दिया गया था इसके कारण हुआ। उनकी बीमारी ने उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर महसूस करने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने फिल्मों में काम करने से सदा के लिए छुट्टी लेने और राजनीति में शामिल होने का निर्णन किया। यही वह समय था जब उनके मन में फिल्म कैरियर के संबंध में निराशावादी विचारधारा का जन्म हुआ और प्रत्येक शुक्रवार को रिलीज होने वाली नई फिल्म के प्रत्युत्तर के बारे में चिंतित रहते थे। प्रत्येक रिलीज से पहले वह नकारात्मक रवैये में जवाब देते थे कि यह फिल्म तो फ्लाप होगी।। 
      राजनीति : 1984-1987
      1984 में अमिताभ ने अभिनय से कुछ समय के लिए विश्राम ले लिया और अपने पुराने मित्र राजीव गांधी की सपोर्ट में राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने इलाहाबाद लोक सभा  सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एच।एन। बहुगुणा  को इन्होंने आम चुनाव  के इतिहास में (68/2 %) के मार्जिन से विजय दर्ज करते हुए चुनाव में हराया था। हालांकि इनका राजनैतिक कैरियर कुछ अवधि के लिए ही था, जिसके तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनैतिक अवधि को पूरा किए बिना त्याग दिया। इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद  में अखबार में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पड़ा। इस मामले में बच्चन को दोषी नहीं पाया गया।
      उनके पुराने मित्र अमरसिंह  ने इनकी कंपनी एबीसीएल के फेल हो जाने के कारण आर्थिक संकट के समय इनकी मदद कीं। इसके बाद बच्चन ने अमरसिंह की राजनैतिक पाटी समाजवादी पार्टी को सहयोग देना शुरू कर दिया। जया बच्चन ने समाजवादी पार्टी  ज्वाइन कर ली और राज्यसभा सभा  की सदस्या बन गई। बच्चन ने समाजवादी पार्टी के लिए अपना समर्थन देना जारी रखा,जिसमें राजनैतिक अभियान अर्थात प्रचार प्रसार करना शामिल था। इनकी इन गतिविधियों ने एक बार फिर मुसीबत में डाल दिया और इन्हें झूठे दावों के सिलसिलों में कि वे एक किसान हैं के संबंध में कानूनी कागजात जमा करने के लिए अदालत जाना पड़ा।
      बहुत कम लोग ऐसे हैं जो ये जानते हैं कि स्‍वयंभू प्रैस ने अमिताभ बच्‍चन पर प्रतिबंध लगा दिया था। स्‍टारडस्‍ट  और कुछ अन्य पत्रिकाओं ने मिलकर एक संघ बनाया, जिसमें अमिताभ के शीर्ष पर रहते समय 15 वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। इन्होंने अपने प्रकाशनों में अमिताभ के बारे में कुछ भी न छापने का निर्णय लिया। 1989 के अंत तक बच्चन ने उनके सैटों पर प्रेस के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन, वे किसी विशेष पत्रिका के खिलाफ़ नहीं थे। ऐसा कहा गया है कि बच्चन ने कुछ पत्रिकाओं को प्रतिबंधित कर रखा था क्योंकि उनके बारे में इनमें जो कुछ प्रकाशित होता रहता था,उसे वे पसंद नहीं करते थे और इसी के चलते एक बार उन्हें इसका अनुपालन करने के लिए अपने विशेषाधिकार का भी प्रयोग करना पड़ा।
      उसके बाद १९८८ में बच्चन फिल्मों में तीन साल की छोटी सी राजनैतिक अवधि के बाद वापस लौट आए और शहंशाह  में शीर्षक भूमिका की जो बच्चन की वापसी के चलते बॉक्स आफिस पर सफल रही। इस वापसी वाली फिल्म के बाद इनकी स्टार पावर क्षीण होती चली गई क्योंकि इनकी आने वाली सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल होती रहीं। 1991 की हिट फिल्म हम  से ऐसा लगा कि यह वर्तमान प्रवृति को बदल देगी किंतु इनकी बॉक्स आफिस पर लगातार असफलता के चलते सफलता का यह क्रम कुछ पल का ही था। उल्लेखनीय है कि हिट की कमी के बावजूद यह वह समय था जब अमिताभ बच्चन ने 1990 की फिल्‍म अग्निपथ  में माफिया डॉन की यादगार भूमिका के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, जीते। ऐसा लगता था कि अब ये वर्ष इनके अंतिम वर्ष होंगे क्योंकि अब इन्हें केवल कुछ समय के लिए ही परदे पर देखा जा सकेगा। 1992 में खुदागवाह  के रिलीज होने के बाद बच्चन ने अगले पांच वर्षों के लिए अपने आधे रिटायरमेंट की ओर चले गए। 1994 में इनके देर से रिलीज होने वाली कुछ फिल्मों में से एक फिल्म इन्सान्यित  रिलीज तो हुई लेकिन बॉक्स ऑफिस पर असफल रही।
      अस्थायी सेवानिवृत्ति की अवधि के दौरान बच्चन निर्माता बने और अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की। ए;बी;सी;एल;) 1996 में वर्ष 2000 तक 10 बिलियन रूपए (लगभग 250 मिलियन अमरीकी डॉलर) वाली मनोरंजन की एक प्रमुख कंपनी बनने का सपना देखा। एबीसीएल की रणनीति में भारत के मनोरंजन उद्योग के सभी वर्गों के लिए उत्पाद एवं सेवाएं प्रचलित करना था। इसके ऑपरेशन में मुख्य धारा की व्यावसायिक फ़िल्म उत्पादन और वितरण , ऑडियो और वीडियो कैसेट डिस्क , उत्पादन और विपणन के टेलीविजन सॉफ्टवेयर , हस्ती और इवेन्ट प्रबंधन शामिल था। 1996 में कंपनी के आरंभ होने के तुरंत बाद कंपनी द्वारा उत्पादित पहली फिल्म तेरे मेरे सपने  थी जो बॉक्स ऑफिस पर विफल रही लेकिन अरशद वारसी दक्षिण और फिल्मों के सुपर स्टार सिमरन   जैसे अभिनेताओं के करियर के लिए द्वार खोल दिए। एबीसीएल ने कुछ फिल्में बनाई लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म कमाल नहीं दिखा सकी। 1997 में, एबीसीएल द्वारा निर्मित मृत्युदाता , फिल्म से बच्चन ने अपने अभिनय में वापसी का प्रयास किया। यद्यपि मृत्युदाता ने बच्चन की पूर्व एक्शन हीरो वाली छवि को वापस लाने की कोशिश की लेकिन एबीसीएल के उपक्रम , वाली फिल्म थी और विफलता दोनों के आर्थिक रूप से गंभीर है ।एबीसीएल 1997 में बंगलौर में आयोजित 1996  की मिस वर्ल्ड सौंदर्य प्रतियोगिता   का प्रमुख प्रायोजक था और इसके खराब प्रबंधन के कारण इसे करोड़ों रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था। इस घटनाक्रम और एबीसीएल के चारों ओर कानूनी लड़ाइयों और इस कार्यक्रम के विभिन्न गठबंधनों के परिणामस्वरूप यह तथ्य प्रकट हुआ कि एबीसीएल ने अपने अधिकांश उच्च स्तरीय प्रबंधकों को जरूरत से ज्यादा भुगतान किया है,जिसके कारण वर्ष 1997 में वह वित्तीय और क्रियाशील दोनों तरीके से ध्वस्त हो गई। कंपनी प्रशासन के हाथों में चली गई और बाद में इसे भारतीय उद्योग मंडल द्वारा असफल करार दे दिया गया। अप्रैल 1999 में मुबंई उच्च न्यायालय ने बच्चन को अपने मुंबई वाले बंग्ला  प्रतीक्षा और दो फ्लेटों को बेचने पर तब तक रोक लगा दी जब तक कैनरा बैंक की राशि के लौटाए जाने वाले मुकदमे का फैसला न हो जाए। बच्चन ने हालांकि दलील दी कि उन्होंने अपना बंग्ला सहारा इंडिया फाइनेंस के पास अपनी कंपनी के लिए कोष बढाने के लिए गिरवी रख दिया है। बाद में बच्चन ने अपने अभिनय के कैरियर को संवारने का प्रयास किया जिसमें उसे बड़े मियाँ छोटे मियाँ  (1998) से औसत सफलता मिली और सूर्यावंशम   (1999) , से सकारात्मक समीक्षा प्राप्त हुई लेकिन तथापि मान लिया गया कि बच्चन की महिमा के दिन अब समाप्त हुए चूंकि उनके बाकी सभी फिल्में जैसे लाल बादशाह  (1999) और हिंदुस्तान की कसम  (1999) बॉक्स ऑफिस पर विफल रही हैं।
      टेलीविजन कैरियर
      वर्ष 2000 में , बच्चन ने ब्रिटिश टेलीविजन शो के खेल, कौन बनेगा करोड़पति ?  को भारत में अनुकूलन हेतु कदम बढाया। शीर्ष‍क कौन बनेगा करोड़पति । जैसा कि इसने अधिकांशत: अन्य देशों में अपना कार्य किया था जहां इसे अपनाया गया था वहां इस कार्यक्रम को तत्काल और गहरी सफलता मिली जिसमें बच्चन के करिश्मे भी छोटे रूप में योगदान देते थे। यह माना जाता है कि बच्चन ने इस कार्यक्रम के संचालन के लिए साप्ताहिक प्रकरण के लिए अत्यधिक 25 लाख रुपए  लिए थे, जिसके कारण बच्चन और उनके परिवार को नैतिक और आर्थिक दोनों रूप से बल मिला। इससे पहले एबीसीएल के बुरी तरह असफल हो जाने से अमिताभ को गहरे झटके लगे थे। नवंबर 2000 में केनरा बैंक ने भी इनके खिलाफ अपने मुकदमे को वापस ले लिया। बच्चन ने केबीसी का आयोजन नवंबर 2005 तक किया और इसकी सफलता ने फिल्म की लोकप्रियता के प्रति इनके द्वार फिर से खोल दिए।
      वापस लौटे :2000-वर्तमान
      सन् 2000 में अमिताभ बच्चन जब आदित्य चोपड़ा  द्वारा निर्देशित यश चोपड़ा‘ की बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट फिल्म मोहब्बतें  में भारत की वर्तमान घड़कन शाहरुख खान के चरित्र में एक पुराने चापलूस की भूमिका की तब इन्हें अपना खोया हुआ सम्मान पुन: प्राप्त हुआ। दर्शक ने बच्चन के काम की सराहना की है , क्योंकि उन्होंने एक ऐसे चरित्र की भूमिका निभाई , जिसकी उम्र उनकी स्वयं की उम्र जितनी थी और अपने पूर्व के एंग्री यंगमैन वाली छवि (जो अब नहीं है) के युवा व्यक्ति से मिलती जुलती भूमिका थी। इनकी अन्य सफल फिल्मों में बच्चन के साथ एक बड़े परिवार के पितृपुरुष के रूप में प्रदर्शित होने में  कभी ख़ुशी कभी ग़म ( 2001) और बागबान  ( 2003) हैं। एक अभिनेता के रूप में इन्होंने अपनी प्रोफाइल के साथ मेल खाने वाले चरित्रों की भूमिकाएं करनी जारी रखीं तथा अक्स  ( 2001) , आंखें ( 2002) , खाकी  (2004) , देव ( 2004) और ब्लेक  ( 2005) जैसी फिल्मों के लिए इन्हें अपने आलोचकों की प्रशंसा भी प्राप्त हुई। इस पुनरुत्थान का लाभ उठाकर, अमिताभ ने बहुत से टेलीविज़न और बिलबोर्ड विज्ञापनों में उपस्थिति देकर विभिन्न किस्मों के उत्पाद एवं सेवाओं के प्रचार के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया। 2005 और 2006 में उन्होंने अपने बेटे अभिषेक के साथ बंटी और बबली  (2005) , गॉड फॉदर, श्रद्धांजलि,सरकार  ( 2005) , और कभी अलविदा ना कहना (2006) जैसी हिट फिल्मों में स्टार कलाकार की भूमिका की। ये सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अत्यधिक सफल रहीं। 2006-07 के शुरू में रिलीज उनकी फिल्मों में बाबुल (2006) , और एकलव्य , नि:शब्द  (2007) बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं किंतु इनमें से प्रत्येक में अपने प्रदर्शन के लिए आलोचकों से सराहना मिली। इन्होंने चंद्रशेखर नागाथाहल्ली द्वारा निर्देशित कन्नड़ फिल्म अमृतधारा में मेहमान कलाकार की भूमिका की है।
      मई 2007 में , इनकी दो फ़िल्मों में से एक चीनी कम और बहु अभिनीत शूटआउट एट लोखंडवाला   रिलीज हुई शूटआउट एट लोखंडवाला बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छी रही और भारत में इसे हिट घोषित किया गया और चीनी कम ने धीमी गति से आरंभ होते हुए कुल मिलाकर औसत हिट का दर्जा पाया।
      अगस्त2007 में, (1975) की सबसे बड़ी हिट फ़िल्म शोले  की रीमेक  बनाई गई और उसे राम गोपाल वर्मा  की आग शीर्षक से जारी किया गया। इसमें इन्होंने बब्बन सिंह ( मूल गब्बर सिंह ) के नाम से खलनायक की भूमिका अदा की जिसे स्वर्गीय अभिनेता अमजद खान  द्वारा 1975 में मूल रूप से निभाया था। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बेहद नाकाम रही और आलोचना करने वालो ने भी इसकी कठोर निंदा की।
      उनकी पहली अंग्रेजी भाषा की फिल्म रितुपरनो घोष, द लास्ट ईयर का वर्ष 2007 में टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह  में 9 सितंबर 2007 को प्रीमियर लांच किया गया। इन्हें अपने आलोचकों से सकारात्मक समीक्षाएं मिली हैं जिन्होंने स्वागत के रूप में ब्लेक  में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद से अब तक सराहना की है।
      बच्चन शांताराम नामक शीर्षक वाली एवं मीरा नायर  द्वारा निर्देशित फिल्म में सहायक कलाकार की भूमिका करने जा रहे हैं जिसके सितारे हॉलीवुड अभिनेता जॉनी डेप  हैं। इस फ़िल्म का फिल्मांकन फरवरी 2008 में शुरू होना था, लेकिन लेखक की हड़ताल की वजह से, इस फिल्म को सितम्बर2008 में फिल्मांकन हेतु टाल दिया गया। 9मई, 2008, भूतनाथ  फिल्म में इन्होंने भूत  के रूप में शीर्षक भूमिका की जिसे रिलीज किया गया। जून 2008 में रिलीज हुई उनकी नवीनतम फ़िल्म सरकार राज, जो उनकी वर्ष 2005 में बनी फिल्म सरकार  का परिणाम है।
      2005,अस्पताल में भर्ती
      नवंबर २००५ में ,अमिताभ बच्चन को एक बार फिर लीलावती अस्पताल की आईसीयू  में विपटीशोथ  के छोटी आँत की सर्जरी लिए भर्ती किया गया। उनके पेट में दर्द की शिकायत के कुछ दिन बाद ही ऐसा हुआ। इस अवधि के दौरान और ठीक होने के बाद उसकी ज्यादातर परियोजनाओं को रोक दिया गया जिसमें कौन बनेगा करोड़पति  का संचालन करने की प्रक्रिया भी शामिल थी। भारत भी मानो मूक बना हुआ यथावत जैसा दिखाई देने लगा था और इनके चाहने वालों एवं प्रार्थनाओं के बाद देखने के लिए एक के बाद एक, हस्ती देखने के लिए आती थीं। इस घटना के समाचार संतृप्त कवरेज भर अखबारों और टीवी समाचार चैनल में फैल गए। अमिताभ मार्च 2006 में काम करने के लिए वापस लौट आए। 
      आवाज के जादूगर
      बच्चन अपनी जबरदस्त आवाज़ के लिए जाने जाते हैं। वे बहुत से कार्यक्रमों में एक वक्ता, पार्श्वगायक  और प्रस्तोता रह चुके हैं। बच्चन की आवाज से प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शतरंज के खिलाड़ी  में इनकी आवाज़ का उपयोग कमेंटरी के लिए करने का निर्णय ले लिया क्योंकि उन्हें इनके लिए कोई उपयुक्त भूमिका नहीं मिला था। फिल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले, बच्चन ने ऑल इंडिया रेडियो में समाचार उद्घोषक, नामक पद हेतु नौकरी के लिए आवेदन किया जिसके लिए इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
      बाराबंकी भूमि प्रकरण
      के लिए भागदौड़  उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव , २००७, अमिताभ बच्चन ने एक फिल्म बनाई जिसमें मुलायम सिंह सरकार के गुणगाणों का बखान किया गया था। उसका समाजवादी पार्टी  मार्ग था और मायावती सत्ता में आई। 2 जून, 2007, फैजाबाद अदालत ने इन्हें आदेश दिया कि इन्होंने भूमिहीन दलित किसानों के लिए विशेष रूप से आरक्षित भूमि को अवैध रूप से अधिग्रहीत किया है।जालसाजी से संबंधित आरोंपों के लिए इनकी जांच की जा सकती है। जैसा कि उन्होंने दावा किया कि उन्हें कथित तौर पर एक किसान माना जाए । यदि वह कहीं भी कृषिभूमि के स्वामी के लिए उत्तीर्ण नहीं कर पाते हैं,तब इन्हें 20 एकड़ फार्महाउस की भूमि को खोना पड़ सकता है जो उन्होंने मावल पुणे के निकट खरीदी थी। 19जुलाई , 2007 के बाद बच्चन ने बाराबंकी उत्तर प्रदेश और पुणे में अधिग्रहण की गई भूमि को छोड़ दिया। उन्होंने महाराष्ट्र, के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को उनके तथा उनके पुत्र अभिषेक बच्चन द्वारा पुणे में अवैध रूप से अधिग्रहण भूमि को दान करने के लिए पत्र लिखा।हालाँकि , लखनऊ की अदालत ने भूमि दान पर रोक लगा दी और कहा कि इस भूमि को पूर्व स्थिति में ही रहने दिया जाए। 11 दिसंबर,2007 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने बाराबंकी जिले में इन्हें अवैध रूप से जमीन आबंटित करने के मामले में हरी झंडी दे दी। बच्चन को हरी झंडी देते हुए लखनव की एकल खंडपीठ के न्यायधीश ने कहा कि ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनसे प्रमाणित हो कि अभिनेता ने राजस्व अभिलेखों  में स्वयं के द्वारा कोई हेराफेरी अथवा फेरबदल किया हो। बाराबंकी मामले में अपने पक्ष में सकारात्मक फैसला सुनने के बाद बच्चन ने महाराष्ट्र सरकार को सूचित किया कि पुणे जिले  की मारवल तहसील में वे अपनी जमीन का आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं।
      राज ठाकरे की आलोचना
      जनवरी,2008 में राजनीतिक रैलियों पर, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन को अपना निशाना बनाते हुए कहा कि ये अभिनेता महाराष्ट्र की तुलना में अपनी मातृभूमि के प्रति अधिक रूचि रखते हैं। उन्होंने अपनी बहू अभीनेत्री एश्वर्या राय बच्चन के नाम पर लड़कियों का एक विद्यालय महाराष्‍ट्र  के बजाय उत्तर प्रदेश के बाराबंकी  में उद्घाटन के लिए अपनी नामंजूरी दी।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमिताभ के लिए राज की आलोचना, जिसकी वह प्रशंसा करते हैं, अमिताभ के पुत्र  अभिषेक  का ऐश्वर्या के साथ हुए विवाह में आमंत्रित न किए जाने के कारण उत्पन्न हुई जबकि उनसे अलग रह रहे चाचा बाल और चचेरे भाई उद्धव को आमंत्रित किया गया था।राज के आरोपों के जवाब में, अभिनेता की पत्नी जया बच्चन जो सपा सांसद हैं ने कहा कि वे ( बच्चन परिवार ) मुंबई में एक स्कूल खोलने की इच्छा रखते हैं बशर्ते एमएनएस के नेता उन्हें इसका निर्माण करने के लिए भूमि दान करें।उन्होंने मीडिया से कहा , ” मैंने सुना है कि राज ठाकरे के पास महाराष्ट्र में मुंबई में कोहिनूर मिल की बड़ी संपत्ति है। यदि वे भूमि दान देना चाहते हैं तब हम यहां ऐश्वर्या राय के नाम पर एक स्कूल चला चकते हैं। इसके आवजूद अमिताभ ने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
      बाल ठाकरे ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि अमिताभ बच्चन एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति है और महाराष्ट्र के लिए उनके मन में विशेष प्रेम है जिन्हें कई अवसरों पर देखा जा चुका है।इस अभिनेता ने अक्सर कहा है कि महाराष्ट्र और खासतौर पर मुंबई ने उन्हें महान प्रसिद्धि और स्नेह दिया है। ।उन्होंने यह भी कहा है कि वे आज जो कुछ भी हैं इसका श्रेय जनता द्वारा दिए गए प्रेम को जाता है। मुंबई के लोगों ने हमेशा उन्हें एक कलाकार के रूप में स्वीकार किया है। उनके खिलाफ़ इस प्रकार के संकीर्ण आरोप लगाना नितांत मूर्खता होगी। दुनिया भर में सुपर स्टार अमिताभ है ।दुनिया भर के लोग उनका सम्मान करते हैं। इसे कोई भी नहीं भुला सकता है। अमिताभ को इन घटिया आरोपों की उपेक्षा करनी चाहिए और अपने अभिनय पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।” कुछ रिपोर्टों के अनुसार अमिताभ की राज के द्वारा की गई गणना के अनुसार जिनकी उन्हें तारीफ करते हुए बताया जाता है, को बड़ी निराश हुई जब उन्हें अमिताभ के बेटे अभिषेक की ऐश्वर्या के साथ विवाह में आमंत्रित नहीं किया गया जबकि उनके रंजिशजदा चाचा बाल और चचेरे भाई उद्धव  को आमंत्रित किया गया था।
      मार्च 23, 2008 को राज की टिप्पणियों के लगभग डेढ महीने बाद अमिताभ ने एक स्थानीय अखबार को साक्षात्कार देते हुए कह ही दिया कि, अकस्मात लगाए गए आरोप अकस्मात ही लगते हैं और उन्हें ऐसे किसी विशेष ध्यान की जरूरत नहीं है जो आप मुझसे अपेक्षा रखते हैं। इसके बाद 28 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी के एक सम्मेलन में जब उनसे पूछा गया कि प्रवास विरोधी मुद्दे पर उनकी क्या राय है तब अमिताभ ने कहा कि यह देश में किसी भी स्थान पर रहने का एक मौलिक अधिकार है और संविधान ऐसा करने की अनुमति देता है। उन्होंने यह भी कहा था कि वे राज की टिप्पणियों से प्रभावित नहीं है।

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