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News Channels : टीआरपी के चक्कर में कितना घनचक्कर बना रही है न्यूज चैनलें

राजनामा.कॉम। टीआरपी यानि टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स। आज के समय में न्यूज चैनलों (News Channels) के लिए एक महत्वपूर्ण मापदंड बन गया है। टीआरपी यह दर्शाती है कि किसी विशेष समय में कितने दर्शक किसी विशेष चैनल या कार्यक्रम को देख रहे हैं। यह आंकड़ा विज्ञापनदाताओं और चैनल मालिकों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसकी मदद से वे यह समझ पाते हैं कि कौन सा कार्यक्रम या समाचार बुलेटिन दर्शकों के बीच अधिक लोकप्रिय है।

टीआरपी को मापने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें ‘पीपल मीटर’ कहते हैं। ये मीटर विभिन्न घरों में लगाए जाते हैं और यह रिकॉर्ड करते हैं कि कौन-सा चैनल कितने समय तक देखा गया। इसके बाद इन आंकड़ों का विश्लेषण कर के टीआरपी की गणना की जाती है। टीआरपी की गणना के लिए एक जटिल सांख्यिकीय प्रक्रिया का पालन किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करती है कि प्राप्त आंकड़े अधिकतम संभव सटीकता से परिलक्षित हों।

न्यूज चैनलों के लिए टीआरपी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह उनके आर्थिक स्वास्थ्य का सीधा संकेतक होता है। उच्च टीआरपी का मतलब होता है अधिक विज्ञापन और अधिक राजस्व, जबकि कम टीआरपी चैनल के लिए चिंता का विषय बन जाती है। इस प्रकार, टीआरपी ने न्यूज चैनलों के कार्यक्रमों की गुणवत्ता और उनकी प्रस्तुति पर सीधा प्रभाव डालना शुरू कर दिया है।

अंततः, टीआरपी एक दोधारी तलवार की तरह काम करती है। एक ओर, यह दर्शकों की पसंद-नापसंद को मापने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, तो दूसरी ओर, यह न्यूज चैनलों को उनके कंटेंट में बदलाव करने के लिए मजबूर कर देती है, जिससे कभी-कभी समाचार की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।

टीआरपी की होड़ और उसका असर

आज के समय में न्यूज चैनलों के बीच टीआरपी की होड़ ने खबरों की प्रस्तुति को काफी हद तक बदल दिया है। टीआरपी यानि ‘टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स’ के माध्यम से चैनलों की लोकप्रियता को मापा जाता है। इस प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए चैनलें खबरों को सनसनीखेज बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं।

उदाहरण के लिए, किसी मामूली घटना को भी बड़े और चौंकाने वाले शीर्षकों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। जैसे, एक साधारण सड़क दुर्घटना को ‘भयावह हादसा’ या ‘मौत की सड़कों पर कहर’ जैसे शीर्षकों के साथ दिखाया जाता है। इस प्रकार की सामग्री दर्शकों का ध्यान जल्दी खींचती है, जिससे टीआरपी में वृद्धि होती है। लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है।

सामग्री की गुणवत्ता और सटीकता पर जोर देने के बजाय, चैनलें अब ऐसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं जो अधिक नाटकीय और संवेदनशील हों। इससे खबरों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं और दर्शकों का विश्वास कम होता है। इसके अलावा, इस प्रकार की सामग्री समाज में भय और अविश्वास का माहौल भी पैदा करती है।

इसके अलावा, टीआरपी की होड़ में चैनलें सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को नजरअंदाज कर देती हैं, जो वास्तव में जनता के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे विषयों पर कम ध्यान दिया जाता है, जबकि सनसनीखेज खबरें प्राथमिकता में रहती हैं।

अतः यह आवश्यक है कि न्यूज चैनलें टीआरपी के चक्कर में खबरों की गुणवत्ता और सटीकता से समझौता न करें। उन्हें यह समझना होगा कि जिम्मेदार पत्रकारिता का पालन करना न केवल समाज के लिए बल्कि उनके अपने दीर्घकालिक प्रतिष्ठा के लिए भी महत्वपूर्ण है।

फेक न्यूज़ और मिसइंफॉर्मेशन

आजकल टीआरपी की होड़ में न्यूज चैनलें अक्सर फेक न्यूज़ और मिसइंफॉर्मेशन फैलाने का सहारा ले रही हैं। समाचारों का सत्यापन किए बिना प्रसारित करना एक चिंताजनक प्रवृत्ति बनती जा रही है। इस प्रवृत्ति के कारण जनता में भ्रम और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

फेक न्यूज़ का प्रभाव व्यापक होता है। यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर लोगों को गुमराह करती है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अविश्वास और तनाव को भी बढ़ावा देती है। मिसइंफॉर्मेशन का प्रसार टीआरपी के चक्कर में और भी बढ़ जाता है, क्योंकि न्यूज चैनलें तेजी से खबरें प्रसारित करने की होड़ में होती हैं, जिससे वे सत्यापन की प्रक्रिया को नजरअंदाज कर देती हैं।

न्यूज चैनलों द्वारा बिना सत्यापन के खबरें प्रसारित करने से जनता में गलतफहमियां पैदा होती हैं। कई बार यह देखा गया है कि फेक न्यूज़ और मिसइंफॉर्मेशन के कारण गंभीर सामाजिक और राजनीतिक परिणाम सामने आते हैं। उदाहरण के लिए, किसी घटना के बारे में गलत जानकारी का प्रसारण सामुदायिक हिंसा को भड़का सकता है या किसी राजनीतिक नेता की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।

फेक न्यूज़ को रोकने के लिए आवश्यक है कि न्यूज चैनलें अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लें और खबरों का प्रसारण करने से पहले उचित सत्यापन करें। इसके साथ ही, दर्शकों को भी सचेत रहना चाहिए और किसी भी खबर को विश्वास करने से पहले उसकी प्रामाणिकता की जांच करनी चाहिए।

समाज के सभी वर्गों को मिलकर फेक न्यूज़ और मिसइंफॉर्मेशन के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाना चाहिए। यह केवल न्यूज चैनलों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी नागरिकों की भी है कि वे सही जानकारी प्राप्त करें और उसे ही आगे बढ़ाएं।

समाज पर प्रभाव

टीआरपी के चक्कर में न्यूज चैनलों द्वारा प्रस्तुत की जा रही खबरों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इस दौड़ में चैनल्स अक्सर सनसनीखेज और विवादास्पद खबरों को प्रमुखता देते हैं, जिससे समाज की मानसिकता और सोचने के तरीके में नकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। इस प्रकार की खबरें समाज में निराशा, भय और असंतोष की भावना को बढ़ावा देती हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।

इसके अलावा, टीआरपी बढ़ाने के लिए खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का चलन भी बढ़ गया है। इससे समाज में भ्रम और गलतफहमियां पैदा होती हैं। लोग खबरों को सत्य मानकर अपनी राय बनाते हैं, जो अक्सर वास्तविकता से कोसों दूर होती है। इस प्रकार, टीआरपी केंद्रित पत्रकारिता समाज में विभाजन और संघर्ष की स्थिति को भी जन्म दे सकती है।

न्यूज चैनलों की इस प्रवृत्ति का एक और प्रभाव यह है कि महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे हाशिये पर चले जाते हैं। टीआरपी के लालच में चैनल्स कम महत्वपूर्ण या लोकलुभावन मुद्दों को अधिक कवरेज देते हैं, जिससे समाज के असली समस्याएं छिप जाती हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान कम हो जाता है, जबकि विवादास्पद और सनसनीखेज खबरें चलाई जाती हैं।

वहीं, न्यूज़ चैनलों का यह रवैया समाज में नैतिकता और मूल्यों के पतन का भी कारण बन रहा है। टीआरपी के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रवृत्ति ने पत्रकारिता के नैतिक मानदंडों को ध्वस्त कर दिया है। इससे समाज में नैतिकता का स्तर गिर रहा है और लोगों के बीच आपसी विश्वास की कमी हो रही है।

समग्र रूप से देखा जाए तो टीआरपी के चक्कर में न्यूज चैनलों द्वारा प्रस्तुत की जा रही खबरें समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। यह समाज की मानसिकता को बदल रही हैं और सामाजिक समस्याओं को बढ़ावा दे रही हैं, जो गंभीर चिंतन और मंथन की मांग करती है।

न्यूज चैनलों का नैतिक दायित्व

न्यूज चैनलों का नैतिक दायित्व समाज को सच्ची और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करना है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है जनसाधारण को समय पर और सत्यापित समाचार उपलब्ध कराना। लेकिन टीआरपी की दौड़ ने इस उद्देश्य को कहीं न कहीं धूमिल कर दिया है। जिम्मेदार पत्रकारिता के लिए आवश्यक है कि चैनल्स अपने नैतिक दायित्वों का पालन करें और टीआरपी के चक्कर में भटकने से बचें।

एक जिम्मेदार पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण पहलू है निष्पक्षता। इसे बनाए रखने के लिए चैनल्स को चाहिए कि वे अपने समाचारों में किसी भी प्रकार की पक्षपातपूर्ण जानकारी या पूर्वाग्रह से बचें। इसके अतिरिक्त, तथ्य-जांच की प्रक्रिया को भी सख्ती से अपनाना चाहिए ताकि गलत या भ्रामक जानकारी प्रसारित न हो सके।

न्यूज चैनलों का नैतिक दायित्व केवल सच्ची और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करने तक सीमित नहीं है। उन्हें समाज के विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता फैलाने और समाज के कमजोर वर्गों की आवाज़ बनने का भी दायित्व है। साथ ही, उन खबरों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं, ना कि केवल वे खबरें जो टीआरपी बढ़ाने में सहायक हों।

टीआरपी की दौड़ में नैतिकता को बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यह असंभव नहीं है। न्यूज चैनलों को अपने संवाददाताओं और पत्रकारों को नैतिक पत्रकारिता की ट्रेनिंग देनी चाहिए और उन्हें प्रेरित करना चाहिए कि वे अपने कार्य में ईमानदारी और निष्पक्षता को प्राथमिकता दें।

इसके अलावा, चैनल्स को अपने दर्शकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। अगर कोई खबर गलत साबित होती है, तो चैनल को बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए और इसे सही करना चाहिए। इस प्रकार के कदम न्यूज चैनलों की साख को बढ़ाते हैं और दर्शकों का विश्वास बनाए रखते हैं।

सरकारी और नियामक उपाय

टीआरपी के चक्कर में न्यूज चैनलों के घनचक्कर बनने की स्थिति पर काबू पाने के लिए सरकार और अन्य नियामक संस्थाएं अनेक महत्वपूर्ण कदम उठा रही हैं। इन कदमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यूज चैनल सही और सटीक जानकारी प्रसारित करें, और उनकी सामग्री निष्पक्ष और जिम्मेदार हो।

सबसे पहले, सरकार ने ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कोड लागू किया है, जो न्यूज चैनलों के लिए एक दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करता है। यह कोड चैनलों को सामग्री की गुणवत्ता और निष्पक्षता बनाए रखने में मदद करता है। इसके तहत, न्यूज चैनलों को भ्रामक और गलत जानकारी प्रसारित करने पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है।

इसके अलावा, भारतीय प्रेस परिषद (PCI) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) जैसे नियामक संस्थाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। ये संस्थाएं न्यूज चैनलों की सामग्री की निगरानी करती हैं और शिकायतों का निपटारा करती हैं। यदि कोई चैनल नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे चेतावनी दी जाती है या फिर उस पर जुर्माना लगाया जाता है।

सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी कड़ी निगरानी रखने के उपाय किए हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स के लिए भी गाइडलाइन्स जारी की हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि ऑनलाइन मीडिया भी जिम्मेदार पत्रकारिता का पालन करे।

न्यूज चैनलों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही भी अनिवार्य की गई है। चैनलों को अपनी टीआरपी के स्रोत और गणना के तरीके को सार्वजनिक करने की आवश्यकता होती है। इससे चैनलों पर दबाव रहता है कि वे टीआरपी बढ़ाने के लिए गलत तरीके न अपनाएं।

इन सरकारी और नियामक उपायों का उद्देश्य न्यूज चैनलों की विश्वसनीयता और जवाबदेही को बढ़ाना है, ताकि वे सही और तथ्यात्मक जानकारी प्रसारित कर सकें और समाज में सकारात्मक भूमिका निभा सकें।

दर्शकों की भूमिका

न्यूज चैनलों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए दर्शकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। दर्शक सिर्फ सूचना के उपभोक्ता नहीं हैं, बल्कि वे इसे प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक भी हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि दर्शक अपनी जिम्मेदारी को समझें और सही तथा सटीक जानकारी की मांग करें।

सबसे पहले, दर्शकों को खबरों की सत्यता की जांच करनी चाहिए। आजकल सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर गलत सूचना फैलाना बहुत आसान हो गया है। इसलिए, दर्शकों को किसी भी खबर पर विश्वास करने से पहले उसकी पुष्टि करनी चाहिए। यह जांच करने के लिए कई विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है।

दूसरे, दर्शकों को अपने विचार साझा करने और चैनलों को फीडबैक देने के लिए आगे आना चाहिए। जब दर्शक किसी चैनल पर भ्रामक या पक्षपाती खबर देखते हैं, तो उन्हें चैनल को सूचित करना चाहिए। इससे चैनल को अपनी त्रुटियों को सुधारने का अवसर मिलेगा और वे भविष्य में अधिक सावधानी बरतेंगे।

इसके अलावा, दर्शकों को उन चैनलों का समर्थन करना चाहिए जो निष्पक्ष और सटीक खबरें प्रस्तुत करते हैं। टीआरपी अक्सर उन चैनलों को अधिक मिलती है जो सनसनीखेज खबरें दिखाते हैं, लेकिन अगर दर्शक जिम्मेदारी से उन चैनलों को देखें जो सत्यता और निष्पक्षता का पालन करते हैं, तो यह एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

अंततः, दर्शकों को अपनी मीडिया साक्षरता बढ़ानी चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि खबरें कैसे बनाई जाती हैं और किस प्रकार की खबरें संभावित रूप से पक्षपाती हो सकती हैं। मीडिया साक्षरता से लैस दर्शक अधिक जागरूक होते हैं और वे अधिक सूचित निर्णय ले सकते हैं।

दर्शकों की यह भूमिका न केवल उनकी व्यक्तिगत जानकारी की गुणवत्ता को बढ़ाएगी, बल्कि पूरी मीडिया इंडस्ट्री को भी अधिक जिम्मेदार बनाएगी।

निष्कर्ष

टीआरपी की होड़ में न्यूज चैनलों का भविष्य एक जटिल और चुनौतीपूर्ण स्थिति में है। टीआरपी बढ़ाने के लिए चैनलों द्वारा अपनाए जा रहे तरीकों ने न केवल पत्रकारिता की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, बल्कि दर्शकों की विश्वसनीयता को भी हिला दिया है। इस प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में, चैनलों को अधिक सनसनीखेज और चौंकाने वाली खबरें प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे खबरों की सटीकता और वस्तुनिष्ठता पर प्रश्नचिह्न लग जाते हैं।

सही और सटीक जानकारी दर्शकों तक पहुंचाने के लिए न्यूज चैनलों को अपनी रणनीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता है। सबसे पहले, उन्हें पत्रकारिता के नैतिक मानकों और सिद्धांतों का पालन करते हुए खबरों की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना होगा। तथ्यात्मक और तटस्थ रिपोर्टिंग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि दर्शकों का विश्वास बहाल हो सके।

इसके अतिरिक्त, न्यूज चैनलों को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए डिजिटल माध्यमों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का सही उपयोग करना चाहिए। ये माध्यम न केवल दर्शकों तक जल्दी पहुंचने में मदद करते हैं, बल्कि उन्हें सही और सटीक जानकारी प्रदान करने का भी एक प्रभावी तरीका हो सकते हैं।

अंततः, नियामक संस्थानों और मीडिया वॉचडॉग्स की भूमिका भी यहां महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें न्यूज चैनलों की गतिविधियों पर नजर रखते हुए, सही दिशा-निर्देश और मानक स्थापित करने चाहिए ताकि पत्रकारिता की गुणवत्ता और सटीकता बनी रहे। दर्शकों को भी सूचित और जागरूक रहना चाहिए, ताकि वे सही और सटीक जानकारी की मांग कर सकें और सनसनीखेज खबरों से प्रभावित न हों।

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