साईं जैसे संत का प्रादुर्भाव एक गरीब परिवार में हुआ था। साईं के सादे जीवन को लोगों ने अपने जीवन में कितना उतारा कहना मुश्किल है। लेकिन, तब के शिरडी के सांई बाबा जितना गरीब थे, आज के साईबाबा उतने ही अमीर है। जिस साईं ने जीवन भर एक कुटिया में, लकड़ी का पीढ़ा और जमीन पर सोकर कर बिता दिया, आज उन्हीं साई के बैठने के लिए हीरों से जड़ा चॉदी और सोने का सिंहासन और मुकूट है। चढ़ावा भी करोड़ो में चढ़ता है। उनके भक्त दुनिया के विभिन्न देशों में है। भारत में भी लोगों का भक्ति भाव साई की तरफ झुकता देखकर ,अन्य शहरों के पंडितों और पुजारियों ने अपने-अपने मंदिरों में, साईं जैसे गरीब संत को आरक्षण देकर उनकी मुर्ती स्थापित करने लगे हैं। ताकि, भक्तों के जेब से निकलने वाला दान और चढ़ावा किसी अन्य साई मंदिर में जाकर न चढ़ जाय और मंदिर के पुजारी भक्तों का मुंह देखता रह जाय। यह मंदिर के पुजारियों और मठों के मठाधीशों का ही खेल है कि, साई जैसे गरीब संत, विलासिता की वस्तुओं से नवाजे जा रहे हैं। उनके संत स्वभाव को नकार कर उन्हें विलासी बना दिया गया। भगवान, संत और साई की भक्ति और आदर सत्कार कैसे की जाती है , कहना मुश्किल है? लेकिन, आज पंडितो ने इसके लिए अपना अलग-अलग मापदंड तय कर लिया है। यहाँ तक कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, तिरूपति, और जग्गनाथपुरी जैसे मंदिरों में भगवान के दर्शन करने के लिए पंडितों को फीस दी जाती है। भगवान प्रसन्न हो या न हो, लेकिन पंडित जरूर प्रसन्न हो जाते है। भक्तों की आस्था को ठेस न पहुंचे और पुजारी नाराज न हो, इसलिए टीवी चैनल का कैमरा इस ओर कभी नहीं घुमा और इन चीजों को कभी दिखाने की जहमत नहीं उठाई। इस ओर कैमरा जब भी घूमा आस्था की भावना लेकर । ताकि चैनल की टीआरपी बरकरार रहे।