“आखिर लोकतंत्र का चौथा खंभा यानी पत्रकारिता गर्त में क्यों जा रही है।? क्यों पत्रकार अपेक्षा का शिकार हो रहे हैं ? क्यों पत्रकारिता हासिये पर जा रहा है। ऐसे कई सवाल हैं, जिसका जवाब आसान नहीं है? हमारी राय में इसके लिए जवाबदेह खुद पत्रकार हैं। कोई दूसरा भला नहीं कर सकता। अगर नहीं सुधरे तो वे सिर्फ हाँके जाते रहेंगे.…
राजनामा.कॉम डेस्क। अहंकार, चापलूसी और संस्थान के गुरुर ने पत्रकारों को गर्त में पहुंचा दिया है। कोरोना काल की त्रासदी में जो दर्द पत्रकारिता जगत को मिला है। उसके बाद भी अगर पत्रकार अहंकार, चापलूसी और संस्थान के गुरुर में हैं तो इस समुदाय का भला भगवान भी नहीं कर सकते। यहां तीन उदाहरण से आप समझिए कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं।
द रांची प्रेस क्लबः कागज और जमीन पर द रांची प्रेस क्लब को असीमित शक्तियों से नवाजा गया है। मगर इस क्लब के महंत और कर्ता धर्ता इतने अहंकारी हैं कि वे पत्रकारों के कल्याण से ज्यादा अपने कल्याण की चिंता में बीमार हो चुके हैं।
दो- दो साल से उन्हें क्लब से जुड़े पत्रकारों का पहचान पत्र निर्गत करने का फुर्सत नहीं मिला है। राजधानी रांची के पत्रकार भूखे सो रहे हैं, पिट- पिटा रहे हैं एक बयान तक इनके द्वारा जारी करना दुश्वार हो गया है। क्योंकि इन्होंने खुद को शासन- प्रशासन के हाथों की कठपुतली बना लिया है।
एजीएम में जो हुआ उसका जिक्र करना उनके जख्मो पर नमक छिड़कने जैसा होगा। बड़ी मुश्किल से बैद्यनाथ महतो के ममले पर धरना- प्रदर्शन पर इन्होंने एकजुटता दिखाई, जिसके बाद प्रशासन और सरकार पर दबाव बढ़ा। स्वास्थ्य मंत्री ने पत्रकार का ईलाज सरकारी खर्चे पर कराने की बात कबूली।
वैसे वर्तमान कमेटी का कार्यालय पूरा होनेवाला है। उपलब्धियां नगण्य कह सकते हैं। यहां तक कि इस क्लब के महंत दूसरे जिलों के पत्रकारों को तुच्छ समझते हैं और उनके आमंत्रण को भी स्वीकार करना अपमान समझते हैं।
द रांची प्रेस क्लब का शोशल ऑडिट अनिवार्य हो गया है। साथ ही इससे जुड़े सदस्यों की पहचान भी जरूरी है। हालांकि यह दीगर बात है कि पत्रकार मूल के लोग अब इसकी चर्चा करना भी फिजुल समझते हैं।
हालांकि द प्रेस क्लब ऑफ सरायकेला-खरसावां के साथ करीब 40 सदस्य जुड़े हैं जो सभी 9 प्रखंडों से हैं। इनकी ओर से काफी प्रयास किया गया कि दो गुट न बने और जिले के पत्रकार एक मंच पर आएं मगर सल्तनत जाने और अहंकार के गुरुर में चूर मुट्ठी भर पत्रकारों ने ऐसा होने नहीं दिया।
खैर द प्रेस क्लब ऑफ सरायकेला-खरसावां ने गठन के बाद पत्रकार हित में अच्छे कार्य किए हैं। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। छोटे से कार्यकाल में इनके द्वारा अपने साथ जुड़े सदस्यों के हर सुख- दुःख का ख्याल रखा जा रहा है।
साथ ही प्रशासन को भी भरोसे में लेने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि दो गुट का लाभ प्रशासन उठा रही है, और मजे ले रही है।
द प्रेस क्लब ऑफ सरायकेला-खरसावां द्वारा ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह कर पूरे राज्य का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है और दो दिन पूर्व जिले के दो पत्रकारों के साथ गम्हरिया थाना प्रभारी द्वारा किए गए बदसलूकी के बाद जो हुआ, वह किसी से छिपा नहीं है।
यहां भी गुटबाजी के चक्कर में आंदोलन को कुंद करने का प्रयास किया गया। मगर 20 घंटे तक लगातार धरने पर बैठकर द प्रेस क्लब ऑफ सरायकेला-खरसावां ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा दी है। क्लब से जुड़े पत्रकार खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
मगर आनन- फानन में यहां के पत्रकारों ने एक हफ्ता पूर्व स्थानीय न्यूज़ चैनल के मालिक को ही अपना अध्यक्ष चुन लिया और घोषणा कर दिया। खूब तामझाम और मिडियाबजी हुई। लंबे समय से ख्वाब देख रहे पत्रकारों के जमीन की मिट्टी धंसने लगी।
द प्रेस क्लब ऑफ जमशेदपुर के नाम से नया संगठन बनाकर गुरुवार से खेला शुरू कर दिया। जिसके लिए अध्यक्ष पद का चुनाव कल यानी 17 सितंबर को होना है। केवल अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा। तीन पत्रकार ने नामांकन किया है।
कुल मिलाकर यहां के पत्रकारों की भी छीछालेदरी तय है। दो- दो गुटों में अगर आप बांटेंगे तो खाखी और खादी आपको कितना सम्मान देंगे ये आप तय करें। बहहरहाल हमारी नजर कल होनेवाले चुनाव पर हमारी नजर बनी रहेगी।
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