संभवतः दुनिया में सबसे ज्यादा सक्रिय एन.जी.ओ. भारत में ही है। वर्ष 2009 के एक सरकारी अनुमान के अनुसार देश में लगभग 33 लाख एन.जी.ओ. काम कर रहे हैं। जिसका मतलब है कि लगभग 400 से भी कम भारतीय के पीछे 1 एन.जी.ओ. हैं। तुलनात्मक रुप से यह संख्या देश के प्राथमिक विधालयों एवॅ प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों से कई गुना ज्यादा है। ध्यान रहे कि यह आंकड़ा 2009 के है। निष्चत रुप से वर्तमान में यह संख्या ओर ज्यादा होगी। दूसरी तरफ इस क्षेत्र में लगी हुई धन राशी भी बहुत बड़ी मात्रा में है। इस सर्वेक्षण में सरकार द्वारा इस क्षेत्र के आर्थिक स्रोतों का भी अध्ययन किया गया है। जिसके अनुसार एन.जी.ओ. और गैर लाभान्वित संस्थाओं ने प्रति वर्ष 40 हजार करोड़ से 80 हजार करोड़ रुपये दान के रुप में जुटायें हैं। उनके लिए सबसे बड़ी दानदाता सरकार है। ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना में सरकार ने सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपये रखे थे। इसी दौरान संस्थाओं के देशी -विदेशी फंडिग में भी उल्लेखनीय वृद्वि हुई है। वर्ष 2007-2008 में एन.जी.ओ. को प्राप्त होने वाला अनुदान 9700 करोड़ रुपये था। जिसमें 1600 से 2000 करोड़ रुपये धार्मिक संस्थाओं को दी गई।
उपरोक्त आंकड़ों पर नजर डालने से यह बाद निकल कर आती है कि एन.जी.ओ. एक महत्वपूर्ण और फलता फुलता क्षेत्र है।
१) ऐसे में सवाल बड़ी संख्या में उन एन.जी.ओ. कामगारों की है जो जनता के मानव अधिकारों और हक-हकुक की लड़ाई के ‘नेक’ काम में लगे है, पर वे खुद ही अधिकार विहीनता की स्थिति में दिखाई दे रही है।
२) दूसरा सवाल आज एन जी ओ के द्वारा अगर वास्तविक रूप से इतनी बड़ी राशि खर्च की जा रही है तो वो जमीन पर क्यूँ नहीं दिख रहा है किसी भी क्षेत्र में (स्वच्छ पानी,,साक्षरता,,गरीबी उन्मूलन,,पौपुलेसन,,या और भी किसी क्षेत्र में जहां भी एन जी ओ की भागीदारी है)…
३) अन्ना जी को देश के एन जी ओ के अभिभावक के रूप में देखा जाता है उनका ध्यान इस तरफ क्यूँ नहीं गया…
ऐसे बहुत से सवाल है जिनका जवाब जनता के आगे टीम अन्ना को देना ही होगा,जिन्होंने
गाँधी टोपी पहन कर इसे नकार दिया है। (नीरज कुमार मिश्र की रिपोर्ट)