राजनामा.कॉम। बिहार के मधुबनी ज़िले में नर्सिंग होम और अस्पतालों के ख़िलाफ़ शिकायतें करने वाले एक स्थानीय पत्रकार का अधजला शव मिला है। परिजनों का आरोप है कि उनकी हत्या अस्पताल संचालकों ने करवाई है।
हत्या की पुष्टि करते हुए बेनीपट्टी इलाक़े के एसएचओ अरविंद कुमार ने बीबीसी से कहा, “सभी बिंदुओं पर जांच की जा रही है। इस मामले में लगातार छापेमारी जारी है और कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है।” हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया है कि हिरासत में लिए गए लोग अस्पतालों से जुड़े हैं या नहीं।
उन्होंने बीबीसी से कहा, “उनकी शिकायतों पर बेनीपट्टी के चार नर्सिंग होम पर कुछ माह पहले ही 50-50 हज़ार का जुर्माना लगाया था।”
दरअसल, 22 साल के बुद्धिनाथ झा मधुबनी के बेनीपट्टी प्रखंड के ही एक न्यूज़ पोर्टल बीएनएन न्यूज़ बेनीपट्टी में काम करते थे। मूल रूप से बेनीपट्टी के ही रहने वाले बुद्धिनाथ बीते दो साल से पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे।
बुद्धिनाथ झा के बड़े भाई त्रिलोक झा के मुताबिक, “पहले उसने एक क्लिनिक शुरू किया था जिसमें बाहर से आए डॉक्टर स्थानीय लोगों का इलाज करते थे। लेकिन स्थानीय नर्सिंग होम संचालकों ने उसे इतना परेशान किया कि उसे ये काम बंद करना पड़ा। इसके बाद इसने ठान लिया कि वो फ़र्ज़ी नर्सिंग होम के इस धंधे को ख़त्म करेगा।”
बुद्धिनाथ झा पिछले तीन सालों से लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के पास अपने इलाके के नर्सिंग होम से जुड़ी शिकायतें भेज रहे थे। बिहार राज्य में 5 जून 2016 को लोक शिकायत निवारण अधिनियम लागू किया गया था। जिसका मकसद 60 कार्य दिवस के अंदर आम लोगों की शिकायतों की सुनवाई करना था। इसके अलावा वो सूचना के अधिकार का भी इस्तेमाल करते थे।
बेनीपट्टी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी एसएन झा जो बीते तीन साल से वहां पदस्थापित है, उन्होनें बीबीसी को बताया, “बीते तीन सालों में उन्होनें नर्सिंग होम और पैथलैब को लेकर लोक शिकायत निवारण के तहत बहुत शिकायतें की थीं। जिस पर यहां से जांच के बाद कार्रवाई की अनुशंसा भी की गई और नर्सिंग होम के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी हुई।”
उनके इस तरह लगातार शिकायतों के चलते फरवरी 2021 बेनीपट्टी और धकजरी के 19 जांच घर और नर्सिंग होम को बंद करने का सरकारी आदेश हुआ।
इसी तरह दिसंबर 2019 में हुई जांच में 9 नर्सिंग होम और पैथलैब को बंद करने का आदेश हुआ। अगस्त 2021 में सिविल सर्जन ने 4 निजी नर्सिंग होम पर 50 हज़ार का जुर्माना भी लगाया था।
बुद्धिनाथ झा लगातार निजी नर्सिंग होम के ख़िलाफ़ लिख रहे थे और शिकायतें कर रहे थे। उन्होंने 7 नवंबर को अपने एक फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा था, ‘द गेम विल रीस्टार्ट ऑन द डेट।
बुध्दिनाथ के चचेरे भाई और न्यूज़ पोर्टल के प्रमुख बीजे विकास बताते है, “इस पोस्ट के बाद बुद्धिनाथ झा 9 नवंबर को लापता हो गया, हमने इसकी शिकायत अगले दिन दी और 11 नवंबर को रिपोर्ट दर्ज हो गई।
सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक वो रात 9 बजे से 9।58 बजे तक घर की गली के आगे पड़ने वाली मुख्य सड़क पर फोन पर बात करते दिख रहा है। वो आख़िरी बार रात दस बजकर दस मिनट पर बाज़ार में दिखा।”
परेशान घरवालों ने अगले दिन बेनीपट्टी थाने में सूचना दे दी थी। पुलिस ने बुद्धिनाथ के मोबाइल को ट्रेस किया तो लोकेशन बेनीपट्टी थाने से पांच किलोमीटर दूर बेतौना गांव में मिली।
10 नवंबर की सुबह 9 बजे के बाद उनका फ़ोन भी बंद हो गया। स्थानीय पुलिस ने उनकी अंतिम लोकेशन पर जाकर जानकारी ली, लेकिन कुछ ठोस नहीं मिला।
बुद्धिनाथ के लापता होने की ख़बर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो तो 12 नवंबर को बुद्धिनाथ के चचेरे भाई बीजे विकास के फोन पर पड़ोस के उड़ेन नाम के गांव से एक स्थानीय व्यक्ति ने फ़ोन किया और एक अज्ञात लाश के मिलने की जानकारी दी।
बीजे विकास बताते हैं, “लाश अधजली हालत में थी। हम लोगों ने उसकी पहचान हाथ की अंगूठी, पैर के मस्से और गले की चेन से की।”
परिवार ने लापता होने के वक्त दी शिकायत और दर्ज कराई एफ़आईआर में कई स्थानीय क्लिनिकों के संचालकों के ख़िलाफ आरोप लगाए हैं। बुद्धिनाथ झा की लाश संदिग्ध परिस्थितियों में मिलने के बाद पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल भी उठा है।
एक पत्रकार की हत्या के बारे में जब बीबीसी ने मधुबनी के ज़िलाधिकारी से बात की तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
वहीं बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के दरभंगा प्रमंडल यूनिट के महासचिव शशि मोहन कहते है, “अंदरूनी इलाकों मे काम करने वाले पत्रकार असुरक्षित हैं। हमारी लगातार मांग रही है कि पत्रकार सुरक्षा कानून लाया जाएं।”
तकरीबन एक माह पहले ही पूर्वी चंपारण में विपिन अग्रवाल नाम के सूचना के अधिकार कार्यकर्ता की भी हत्या कर दी गई थी।
सूचना के अधिकार कार्यकर्ता महेन्द्र यादव कहते है, “स्वास्थ्य के मुद्दे पर एक आदमी भ्रष्टाचार उजागर कर रहा है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत कोविड के वक्त महसूस की गई, उसको मार दिया गया। और ये बड़े पदाधिकारियों की संलिप्तता के बगैर संभव नहीं है। अगर आपको सुशासन लाना है तो आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा भी करनी होगी।”
द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक सूचना का अधिकार लागू होने के बाद से बिहार में 11 साल में 20 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। (साभारः पटना से बीबीसी हिंदी के लिए सीटू तिवारी की रिपोर्ट )
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