Home जर्नलिज्म भारतीय मीडिया में बढ़ रही है मर्डोकों की तादात

भारतीय मीडिया में बढ़ रही है मर्डोकों की तादात

0
पत्रकारिता एक सेवा है। लोगों को सूचना देने का एक माध्यम है। लोगों के दु:ख-दर्द और उनकी समस्या को आवाज देने वाला एक मंच है। उत्पाद और अखबार में फर्क करना चाहिए। मीडिया संस्थानों को भी अपने आपको कारपोरेट घराना नहीं मानना चाहिए। अगर मीडिया संस्थान एक कंपनी की तरह काम करेंगे तो मीडिया की प्रतिष्ठा भी कम होगी। मर्डोक के अखबार ने एक कारपोरेट घराने की तर्ज पर काम किया।जिसका उदाहरण सबके सामने है। सामाजिक जिम्मेदारी से काम करने का भाव मीडिया संस्थानों में होना चाहिए। दुर्भाग्य है कि मीडिया में मर्डोक जैसी सोच रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

error: Content is protected !!
Exit mobile version