Home जर्नलिज्म झारखंडी मीडिया ने तो शहीदों की परिभाषा ही बदल दी

झारखंडी मीडिया ने तो शहीदों की परिभाषा ही बदल दी

0
यह कतरन है रांची से प्रकाशित राष्ट्रीय समाचार पत्र दैनिक हिन्दुस्तान की। कमोवेश यही आलम यहां से प्रकाशित सभी समाचार पत्रों में प्रमुखता से छापी गयी है।
इस कहानी के मूल जनक हैं झाविमो सुप्रीमों बाबूलाल मरांडी। जब अलग राज्य गठन के बाद यहां भाजपा की सरकार बनी तो वे उसके मुखिया (प्रथम मुख्यमंत्री) बनाये गये।बिहार में लालू जी तो झारखंड में मरांडी जी।
जब मरांडी जी को लगा कि उनकी कमजोर पड़ रही है,राज्य में डोमिसाइल नीति लागू करने की चर्चा छेड़ दी।फिर क्या था…समूचा झारखंड इसकी आग में धू-धू कर जलने लगा।
जिधर देखो तनाव ही तनाव। कथित मूलवासी और बाहरी के बीच हिंसा ही हिंसा।इस हिंसा में दोनों गुटों के कई लोग मारे गए और उसे छुटभैये नेताओं ने शहीद बना दिया।
मैं ऐसे नेताओं की ज्यादा बात नहीं करता।यहां पर मीडिया की बात करना चाहूंगा।जिसने भी गुटीय हिंसा में मारे गये लोगों को एक दशक से शहीद होने की पूंगी हर साल बजाते आ रहा है।क्या वे लोग वाकई शहीदों की श्रेणी में आते हैं..जिनकी टीस आज भी असहनीय है। 

error: Content is protected !!
Exit mobile version