राजनामा (मुकेश भारतीय)। बिहार के पाटलिपुत्र संसदीय सीट से इस बार भाजपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे राजद के राज्यसभा सदस्य रामकृपाल यादव का अतीत मुसीबत बन गई है। भाजपा के अनेक बड़े नेता भी उनके बचाव में खड़े होते दिखाई नहीं दे रहे हैं। निचले स्तर के कार्यकर्ता भी लालू के ‘हनुमान’ के प्रचार को लेकर काफी दुविधा में हैं। खास कर भाजपा में प्रभावशाली आरएसएस से जुड़े लोग उनसे कन्नी काट बैठे हैं।
इसकी मूल वजह है कि जिस रामकृपाल यादव ने राजनाथ सिंह के पैर छूकर बीजेपी का दामन थामा और नरेंद्र मोदी की जम कर तारीफ की, उन्होंने कुछ ही दिन पहले कहा था- देश में मोदी का रथ रोकने की ताकत केवल लालू जी में हैं। उन्होंने ही लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका था और वह ही मोदी का रथ भी रोकेंगे।
वे सरेआम कहते रहे कि मोदी पीएम बने तो देश बिल्कुल टूट जाएगा। वह गुजरात में मुस्लिमों के नरसंहार के दोषी हैं। गुजरात से देश कलंकित हुआ है। ऐसी मानसिकता वाला आदमी पीएम की गद्दी पर बैठेगा तो देश का विनाश होगा।
लेकिन, बीजेपी में शामिल होकर रामकृपाल यादव ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने ही गुजरात में मुस्लिमों की हालत में सुधार किया है।
सबसे बड़ी बात कि श्री रामकृपाल यादव फिलहाल राजद के राज्यसभा सदस्य होते हुये भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने न तो राजद के राज्यसभा सदस्य पद से इस्तीफा दिया है और न ही शामिल हुये हैं।
बकौल राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव- ‘ हमने न तो उन्हें पार्टी से बाहर निकाला और न ही उनकी राज्यसभा सदस्यता छोड़ने की मांग की। पूरा देश जान गया है कि कैसे रामकृपाल यादव ने अपने सिद्धांतों को बेच दिया और विचारों का होलिका दहन किया। यह आदमी (रामकृपाल) अवसरवादिता दिखाकर सांप्रदायिक लोगों की गोद में बैठ गया। जैसे भस्मासुर भस्म हुआ यह भी ऐसे ही भस्म होगा। ‘
लालू की पार्टी से ही भाजपा में आए नवल किशोर यादव ने का कहना है कि रामकृपाल यादव सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए भाजपा ज्वॉयन की है। राजद में उनकी कोई औकात नहीं थी। वह बस लालू परिवार के नौकर थे।’
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि पाटलिपुत्र सीट से लालू यादव ने अपनी बेटी मीसा भारती को जब उम्मीदवार घोषित किया था, तभी रामकृपाल की नाराजगी चरम पर चली गई। उन्होंने राजद के सारे पद छोड़ दिए।
बहरहाल, रामकृपाल यादव का राज्यसभा सदस्य काल खत्म होने में दो साल बाकी है। ऐसे में टिकट न मिलने मात्र से विचलित होकर कट्टर विरोधी धारा के दल में अचानक शामिल होना और उसकी टिकट पर चुनाव लड़ने जुगत ने उनकी छवि को तार-तार कर दिया है।
अब देखना है कि रामकृपाल यादव और भाजपा उन हमलों का मुकाबला कैसे कर पाते हैं, जो उनके विरोधियों कर रहे है। पाटलिपुत्र सीट से इस बार उनका चुनावी जंग आसान नहीं लग रहा है।